लोकसभा चुनाव में अभी एक साल का वक्त है। लेकिन राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में लग गई हैं। मुलाकातों का दौर जारी हो चुका है। जिसकी शुरुआत बिहार से ही हुई है ये कहा जा सकता है। एक ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को एक जुट करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। 12 जून को राजधानी पटना में विपक्षी दलों की जुटान होनी है। बिहार से उठ रही विपक्षी एकता की लहर को थामने के लिए भाजपा भी रणनीतियां बनने में लगी है। नीतीश कुमार के विरोधियों से भाजपा की मुलाकात जारी है।
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नड्डा से कुशवाहा की मुलाकात
नीतीश कुमार से बगावत के बाद अपनी पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाह की भाजपा से नजदीकियां बढ़ रही है। जब से उपेंद्र कुशवाहा अपनी नई पार्टी का गठन किया है तब से वो प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते नहीं थक रहे। जिस नीतीश कुमार को कभी पीएम मटेरियल बताते थे अब वो उनकी आँखों में खटक रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मुलाकात की तस्वीर सामने आई है। जिसके बाद से एनडीए में रालोजद के शामिल होने के कयास लगाये जा रहे हैं।
हालांकि अभी तक ना ही भाजपा की तरफ से और ना ही रालोजद की तरफ से कोई बयान समाने आया है। उपेंद्र कुशवाहा भी कई बार ये बात कर चुके है कि गठबधन को लेकर कोई भी फैसला सही समय पर लेंगे। बता दें कि इससे पहले उपेंद्र कुशवाहा गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले थे। उस समय से ही उनके एनडीए में शामिल होने की चर्चा तेज है।
BJP की जरुरत कुशवाहा
राजनीतिक जानकारों की मानें तो उपेंद्र कुशवाहा भाजपा की जरुरत हैं। इसका पहला कारण उपेंद्र कुशवाहा का कुशवाहा समाज के नेता के तौर पर बड़ा चेहरा होना हैं। कुशवाहा समाज के वोटरों की संख्या भी बिहार में अच्छी-खासी है। दूसरा कारण बहुत महत्वपूर्ण हैं। दरअसल बिहार में भाजपा के सामने 7 दलों के महागठबंधन का चक्रव्यूह है। वही भजपा के पास बिहार में महज एक सहयोगी दल है और वो पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी है। इसलिए महागठबंधन से टकराने के लिए भाजपा को अन्य सहयोगी दलों की आवश्कता होगी। जिसके लिए उपेंद्र कुशवाहा की रालोजद एक सही विकल्प है।