भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को लेकर बिहार में बड़ी बैठक होने जा रही है। कल यानि 23 जून को राजधानी पटना में 19 विपक्षी दलों के नेता इसमें शामिल होंगे। भाजपा विपक्षी एकता वाली इस बैठक पर जमकर हमलावर है। लेकिन एक और राजनीतिक पार्टी है जो भाजपा के साथ तो नहीं है पर विपक्षी एकता बैठक पर तंज कस रही है। वो पार्टी बसपा है। बसपा की प्रमुख मायावती ने विपक्षी एकजुटता वाले अभियान से अपनी पार्टी को काफी दूर रखा हुआ है। अब वो भाजपा की बोली बोलते हुए भी नजर आ रही हैं। उन्होंने विपक्षी एकता बैठक पर तंज सकते हुए कहा कि ‘दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते रहिए’।
विपक्षी एकता पर तंज
दरअसल बसपा एक ऐसी पार्टी है, जो ना तो भाजपा के समर्थन में है और ना ही उसके खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष के साथ। यही कारण है कि बसपा प्रमुख मायावती भाजपा के साथ-साथ विपक्षी एकता वाली बैठक पर सवाल खड़ा किया। उन्होंने एक के बाद एक चार ट्वीट कर विपक्षी एकता वाली बैठक पर हमला बोला। मायावती ने कहा कि “महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन, अशिक्षा, जातीय द्वेष, धार्मिक उन्माद/हिंसा आदि से ग्रस्त देश में बहुजन के त्रस्त हालात से स्पष्ट है कि परमपूज्य बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के मानवतावादी समतामूलक संविधान को सही से लागू करने की क्षमता कांग्रेस, बीजेपी जैसी पार्टियों के पास नहीं।
बल्कि अब लोकसभा आम चुनाव के पूर्व विपक्षी पार्टियाँ जिन मुद्दों को मिलकर उठा रही हैं और ऐसे में नीतीश कुमार द्वारा कल 23 जून की विपक्षी नेताओं की पटना बैठक ’दिल मिले न मिले हांथ मिलाते रहिए’ की कहावत को ज्यादा चरितार्थ करता है।”
मायावती के सवाल
मायावती ने आगे कहा कि “वैसे अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी को ध्यान में रखकर इस प्रकार के प्रयास से पहले अगर ये पार्टियाँ, जनता में उनके प्रति आम विश्वास जगाने की गज़ऱ् से, अपने गिरेबान में झाँककर अपनी नीयत को थोड़ा पाक-साफ कर लेतीं तो बेहतर होता। ’मुँह में राम बग़ल में छुरी’ आख़िर कब तक चलेगा? यूपी में लोकसभा की 80 सीट चुनावी सफलता की कुंजी कहलाती है, किन्तु विपक्षी पार्टियों के रवैये से ऐसा नहीं लगता है कि वे यहाँ अपने उद्देश्य के प्रति गंभीर व सही मायने में चिन्तित हैं। बिना सही प्राथमिकताओं के साथ यहाँ लोकसभा चुनाव की तैयारी क्या वाकई जरूरी बदलाव ला पाएगी?