लोकसभा चुनाव 2024 में होना है, जिसके लिए अब उंगलियों पर गिनने भर के महीने बचे हैं। अगला लोकसभा चुनाव बीते कई चुनावों से अलग हो जाए, इसकी पूरी कोशिश चल रही है। लगातार दो बार किसी दल को बहुमत मिलना अर्से से नहीं हुआ था। लेकिन भाजपा ने यह करिश्मा कर दिया है। तीसरी बार भी भाजपा न आ जाए, इसके प्रयास में विपक्ष के दलों का गठबंधन बनने की प्रक्रिया चल रही है। भाजपा इस वक्त अपनी चुनावी तैयारियों में कूद चुकी है तो दूसरी ओर लगभग डेढ़ दर्जन दल एक ऐसा मोर्चा बनाना चाह रहे हैं, जो भाजपा से सीधी टक्कर दे। इन दलों की आपस में कई मुद्दों पर नहीं बनी है लेकिन आज ये एक होना चाहते हैं। इसके पीछे का गणित बिल्कुल साफ है।
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राज्य की सरकारों के हिसाब से गठबंधन मजबूरी
दरअसल, लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव अलग अलग मुद्दों पर होते हैं। लेकिन 10 साल की सत्ता के बाद एंटी इन्कम्बेंसी की टीस उभर ही जाती है। ऐसे में यह मान लें कि भाजपा के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी अगर हावी हो गई है। तो भी विधानसभा की स्थितियों के मुताबिक भाजपा को टक्कर देने के लिए विपक्ष के दलों को गठबंधन करना ही होगा। यह विकल्प नहीं, मजबूरी है। क्योंकि अभी भी भाजपा के पास राज्यों में सत्ता किसी भी दूसरे दल से कहीं अधिक है। ऐसे में सत्ता वाले राज्यों में लोकसभा सीटों पर भाजपा प्रभावी तरीके से लड़ सकती है। हालांकि चुनावी राजनीति में गणित इतना सरल भी नहीं होता। लेकिन मौजूदा स्थिति के मुताबिक भाजपा तभी पिछड़ सकती है जब विपक्षी दल एक होकर अपने प्रभुत्व वाले राज्यों में जनता को अपने पक्ष में लाने में सफल हों।
172 सीटों पर भाजपा का ‘शासन’
वैसे तो मौजूदा राजनीतिक स्थिति के अनुसार भाजपा 15 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में सत्ता में है। लेकिन इनमें से 10 राज्य ऐसे हैं, जहां भाजपा के नेताओं को सीएम की जिम्मेदारी मिली है। यूं कह सकते हैं कि भाजपा 10 राज्यों में पूर्ण शासन कर रही है। इन 10 राज्यों में सबसे बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश भी शामिल है, जहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटें हैं। यूपी को मिलाकर जिन 10 राज्यों में भाजपा के सीएम हैं, वहां के कुल लोकसभा सीटों की संख्या 172 है।
53 सीटों पर सहयोगियों के भरोसे भाजपा
देश में पांच वैसे भी राज्य हैं, जहां भाजपा के मुख्यमंत्री नहीं होते हुए भी वो सत्ता में भागीदार है। इन पांच राज्यों में सबसे बड़ा महाराष्ट्र है, जो लोकसभा सीटों के पैमाने पर देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। यहां लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। जबकि अन्य चार राज्यों में पांच लोकसभा सीटें हैं।
कांग्रेस के पास 68 सीटों के चार राज्य
मौजूदा स्थिति में कांग्रेस के पास चार राज्यों में अपनी सरकार है। इसके अलावा बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में कांग्रेस सहयोगी दल के रूप में सरकार में शामिल है। कांग्रेस की सरकार वाले चार राज्यों में से दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी साल चुनाव होना है। लेकिन अभी की स्थिति में कांग्रेस शासित चार राज्यों की लोकसभा सीटें देखें तो कुल 68 सीटें हैं।
विपक्षी एकता का 176 सीटों पर असर
भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत कांग्रेस के राज्यों से अधिक उन राज्यों में है, जहां क्षेत्रीय या अन्य दलों की सरकार है। कुल 8 राज्य ऐसे हैं, जहां की सरकार में शामिल दल भाजपा का खुला विरोध कर रहे हैं। इन राज्यों में कांग्रेस तो भाजपा के खिलाफ है लेकिन अन्य दलों के भी खिलाफ होने से भाजपा की मुश्किल अधिक हो सकती है। इन 8 राज्यों में कुल 176 सीटें हैं, जिनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, केरल, झारखंड, पंजाब, दिल्ली और मिजोरम शामिल है। विपक्षी एकता का सारा जोर इन 8 राज्यों में ही दिखेगा, जहां कांग्रेस को सीटें छोड़नी होंगी या ताकत दूसरे दलों को ट्रांसफर करनी होगी।
तीन राज्यों की सरकार वाली पार्टियां अकेले दम पर
एक तरफ दो बार बहुमत से लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर हैट्रिक की कोशिश भाजपा कर रही है। तो दूसरी ओर भाजपा को रोकने के लिए डेढ़ दर्जन दलों का समूह एक साथ बैठकर रणनीति तैयार करने के प्रयास में जुटा है। इस बीच तीन ऐसे भी राज्य हैं, जहां की सरकार में शामिल दल न भाजपा के साथ हैं और न ही विपक्ष की एकता के साझेदार। इसमें आंधप्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, ओड़िशा में बीजू जनता दल और तेलंगाना में बीआरएस सत्ता में है। लेकिन तीनों दलों ने साफ कर दिया है कि वे लोकसभा चुनाव में अकेले जाएंगे। इन तीन राज्यों को मिलाकर कुल 63 सीटें हैं। इसमें आंध्रप्रदेश में 25, ओड़िशा में 21 और तेलंगाना में 17 सीटें हैं।
वो लोकसभा सीटें, जहां विधानसभा चुनाव नहीं
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में छह ऐसे हैं, जहां विधानसभा नहीं है। इसमें जम्मू-कश्मीर में तो चुनाव पेंडिंग है। जबकि अन्य केंद्रशासित प्रदेश हैं। जम्मू-कश्मीर में 05 सीटें हैं। जबकि अन्य पांचों को मिलाकर छह सीटें हैं।