PDA के जवाब में NDA का मास्टर स्ट्रोक : भाजपा को केंद्रीय सत्ता की हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए 15 दलों ने NDA (National Democratic Alliance) के खिलाफ PDA (Patriotic Democratic Alliance) बना दिया है। इस कदम को विपक्षी दल बड़ी जीत बता रहे हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि उनकी एकजुटता नरेंद्र मोदी को 2024 में तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने से रोक सकती है। लेकिन विपक्षी दलों की इस तैयारी का जवाब NDA या यूं कहें कि BJP ने पहले ही सोच लिया है। भाजपा ने लड़ाई का पूरा मैदान शिफ्ट करने की योजना बना ली है। इस योजना में एक बार फिर नरेंद्र मोदी ही सबसे आगे हैं क्योंकि संभावना ये है कि उनका नया रणक्षेत्र अब बिहार की राजधानी पटना में होगा। यानि नरेंद्र मोदी वाराणसी लोकसभा सीट छोड़ देंगे और पटना साहिब सीट से 2024 में चुनाव लड़ेंगे। इस बात की पुष्टि भले ही अभी नहीं हो रही है, लेकिन भाजपा की रणनीति इसी ओर इशारा कर रही है।
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वाराणसी छोड़ने का कारण
गुजरात के सीएम रहते हुए नरेंद्र मोदी ने 2014 में यूपी की वाराणसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की, तो पूरे उत्तर प्रदेश में अलग ही माहौल बन गया। इस माहौल का फायदा ये हुआ कि यूपी की 80 सीटों में से 73 सीटों पर NDA को जीत मिली थी। नरेंद्र मोदी के यूपी आने के बाद ही भाजपा को यूपी विधानसभा चुनाव में भी जीत मिली। 2017 में भाजपा ने अपने विरोधियों को काफी पीछे छोड़ दिया। फिर आया 2019 का लोकसभा चुनाव। इसमें भी भाजपा विरोधी चित्त हुए। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अपने विरोधियों को कोई राहत नहीं दी। ऐसे में भाजपा ने यह मान लिया है कि अब यूपी को योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर भी लड़ा जा सकता है क्योंकि योगी की अगुवाई में एक लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की है।
मोदी के लिए पटना ही क्यों?
नरेंद्र मोदी वाराणसी छोड़ देते हैं तो संभावना यह दिख रही है कि वे पटना की पटना साहिब लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि वे पटना साहिब से आखिर लड़ना क्यों चाहते हैं। तो इसका एक जवाब तो यह है कि पटना साहिब भाजपा के लिए सेफ सीट है। दूसरा कारण ये है कि PDA के गठन का बड़ा असर बिहार में लोकसभा की सीटों पर पड़ने की संभावना है। नरेंद्र मोदी का पटना साहिब सीट पर चुनाव लड़ना भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में कारगर हो सकता है। 2009 में यूपी में भाजपा सिर्फ 15 सीटें जीत सकी थी। जबकि 2004 में भाजपा की सीटें सिर्फ 10 थीं। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की यूपी में एंट्री के बाद भाजपा रिकॉर्ड 73 सीटें जीतने में कामयाब रही। चूंकि यूपी अभी भाजपा के कंट्रोल में है। साथ ही मायावती और अखिलेश यादव के अलग रहने से PDA वहां सफल भी नहीं है। इसलिए मोदी को वाराणसी छोड़ने में दिक्कत नहीं होगी। जबकि बिहार से चुनाव नरेंद्र मोदी लड़ते हैं तो भाजपा की उम्मीद वैसे ही नतीजे की है, जैसे यूपी में मिले थे।
पटना साहिब से मोदी को लड़ाने के लिए भाजपा की तैयारी !
- पीएम नरेंद्र मोदी पटना साहिब से चुनाव लड़ सकते हैं, यह सिर्फ कयासबाजी नहीं है। क्योंकि भाजपा की तैयारी और रणनीति इसी ओर इशारा कर रही है कि भाजपा बिहार में कुछ विशेष करने की कोशिश में है। दरअसल, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण वो दो चेहरे हैं, जिन्हें भाजपा ने बिहार में तैनात कर रखा है। इनमें पहला नाम है कि भीखू भाई दलसानिया का, जो बिहार में भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री हैं। भीखू भाई दलसानिया और नरेंद्र मोदी अर्से से एक दूसरे के करीबी रहे हैं। गुजरात में लगभग दो दशकों तक भीखू भाई दलसानिया के जिम्मे ही भाजपा रही है। अब भीखू भाई दलसानिया बिहार में भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री हैं, तो इसके पीछे भाजपा की योजना बड़ी ही होगी।
- दूसरा नाम है सुनील ओझा का। सुनील ओझा बिहार में भाजपा के सह प्रभारी हैं। कुछ महीने पहले तक सुनील ओझा यूपी में थे और नरेंद्र मोदी के लिए काम कर रहे थे। सुनील ओझा भी मूलत: गुजरात से हैं, नरेंद्र मोदी के करीबी हैं। नरेंद्र मोदी के यूपी आने के साथ ही सुनील ओझा भी यूपी आए थे। अब सुनील ओझा को बिहार भेज दिया गया है। पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि सुनील ओझा लो-प्रोफाइल रहकर संगठन के लिए काम करने वाले नेताओं में शामिल हैं।
ऐसे में इन दो गुजरातियों का बिहार आना सिर्फ संयोग नहीं हो सकता। भीखू भाई दलसानिया और सुनील ओझा में भाजपाई होने और गुजरात का मूल निवासी होने की समानता के साथ सबसे बड़ी समानता ये भी है कि दोनों के रिश्ते नरेंद्र मोदी से अच्छे बताए जाते हैं। ऐसे में इन दोनों के बिहार में रहते हुए नरेंद्र मोदी का पटना साहिब से चुनाव लड़ने की संभावना कहीं बढ़ जाती है।