भारत में समान नागरिक संहिता (UCC), अब तक एक विचार भर रही है। लेकिन अब मौजूदा केंद्र सरकार इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। सबके अपने अपने तर्क हैं। यूसीसी के समर्थन में खड़े लोग यह तर्क दे रहे हैं कि भारत एक घर की तरह है। ऐसे में अलग अलग लोगों के लिए अलग कानून क्यों? इसलिए इनलोगों को UCC जरुरी लग रहा है। वहीं खिलाफ में खड़े लोग तो यहां तक बोल रहे हैं कि Uniform Civil Code का लागू होना, देश के संविधान के साथ खिलवाड़ है। इन लोगों का यह भी कहना है कि धर्म की स्वायत्तता संविधान में दी गई फंडामेंटल राइट्स में शामिल है। इसलिए इसमें बदलाव का सवाल ही नहीं उठता।
शादी को लेकर बवाल अधिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की सभा में UCC की चर्चा छेड़ी। इसके बाद से कानूनी गलियारों से लेकर राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा सरेआम हो चुकी है। UCC को लागू करने की संभावना जैसे ही सामने उठती है, सबके जेहन में बात शादी के कानूनों में बदलाव पर टिक जाती है। बवाल भी इसी को लेकर है। AIMIM के चीफ व सांसद असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि हिंदुओं में शादी जन्म-जन्मांतर का रिश्ता है। जबकि इस्लाम में शादी एक कांट्रैक्ट है। दोनों चीजें अलग हैं। इसलिए UCC इस मामले में लागू ही नहीं हो सकता। इसके बावजूद अगर यह लागू हुआ तो किस धर्म में क्या बदलाव होंगे, यह जान लीजिए…
धर्म पर असर
- हिंदू : समान नागरिक संहिता लागू होने के साथ ही हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 और हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956 में संशोधन एक अनिवार्य कदम हो जाएगा। हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 2(2) में कहा गया है कि इसके प्रावधान अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं होते। लेकिन UCC में तो यह व्यवस्था होगी ही नहीं। ऐसे एक्सेप्शन उसमें बदल जाएंगे।
- इस्लाम : इस्लाम में शादियां और तलाक द मुस्लिम पर्सनल (शरियत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत होती हैं। लेकिन Uniform Civil Code लागू होने की स्थिति में शरियत कानून में बदलाव हो सकते हैं। इसमें शादी के लिए न्यूनतम उम्र की अनिवार्यता लागू होगी। साथ ही पॉलीगैमी यानी एक से ज्यादा पत्नियां रखने की प्रथा में बदलाव हो सकता है।
- सिख : शादियों के लिए सिख धर्म में आनंद मैरिज एक्ट, 1909 है। लेकिन इस एक्ट में तलाक का प्रावधान ही नहीं है। तलाक की स्थिति में हिंदू मैरिज एक्ट को आधार माना जाता है। लेकिन UCC लागू हुआ तो यह व्यवस्था भी समान नियमों के तहत हो जाएगी।
- ईसाई : यूसीसी का लागू होना ईसाई धर्म में भी बड़ा बदलाव लेकर आएगा। उत्तराधिकार, एडॉप्शन और विरासत जैसे मामलों में ईसाई धर्म के नियम अलग हैं। साथ ही क्रिश्चियन डिवोर्स लॉ में भी अलग प्रावधान हैं, जिसके अनुसार किसी कपल को तलाक के लिए उन्हें दो साल तक अलग रहना ही होगा। जबकि सक्सेशन एक्ट 1925 के अनुसार ईसाई धर्म में मां को मृत बच्चों की संपत्ति पर अधिकार नहीं होता। यह संपत्ति पिता को ही मिलती है। लेकिन UCC की एंट्री ऐसे तमाम प्रावधानों का एग्जिट बन जाएगी।
- पारसी : भारत में पारसी धर्म के लिए अलग से शादी और तलाक का एक्ट है। पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट, 1936 के अनुसार अन्य धर्म के पुरुष से शादी करने वाली पारसी महिला अपने धर्म की परंपराओं के अनुरुप मिले अधिकार से वंचित कर दी जाती है। इसके अलावा पारसी धर्म में गोद ली हुई बेटियों को सम्पूर्ण अधिकार नहीं मिलते। बेटों के मामले में नियम अलग हैं। गोद लिए बेटे को पिता के अंतिम संस्कार का अधिकार है। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हुआ तो ये भेदभाव की व्यवस्था बदल जाएगी।