महाराष्ट्र की राजनीति में आज एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला। कल तक जो अजित पवार महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष थे, वो आज उपमुख्यमंत्री बन चुके हैं। दरअसल आज से ठीक एक साल पहले जिस तरह की टूट शिवसेना में देखने को मिली थी, कुछ ऐसा ही हाल एनसीपी का भी हुआ है। एनसीपी नेता अजित पवार कई विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे और शिंदे-फडणवीस सरकार को अपना समर्थन देने की घोषणा की और उसके बाद शपथ ग्रहण भी होगया। एनसीपी के कई बड़े नेता भी अजित पवार के साथ हो लिए हैं और उन्हें मंत्री पद भी मिल गया है।
महाराष्ट्र की सरकार अब ट्रिपल इंजन की हो गई है ऐसा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का कहना है। शिवसेना(शिंदे गुट), भाजपा और एनसीपी वाली सरकार अब महाराष्ट्र में बन चुकी है। अजित पवार के इस कदम से सबसे बड़ा झटका उनके चाचा और एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार को लगा है। अब बड़ा सवाल ये है कि आगे शरद पवार क्या करेंगे? उनके पास आप्शन क्या है?
Live Update: NCP को लगा ग्रहण, उपमुख्यमंत्री के रूप में अजित पवार का शपथ ग्रहण, ये बने मंत्री
पार्टी और चुनाव चिन्ह से धोएंगे हाथ
शरद पवार आगामी लोकसभा की तैयारी में हैं। वो भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता के अहम कड़ी है ऐसे में उनकी पार्टी में इस तरह का भूचाल आना बड़ा झटका है। कयास यही लगाए जा रहे कि जैसा हाल उद्वव ठाकरे का हुआ वैसा ही हाल शरद पवार का होगा। उनसे उनकी पार्टी और उसका चुनाव चिन्ह छीन जाएगा। दरसल शपथग्रहण के बाद अजित पवार ने दावा किया है कि ये एनसीपी टूटी नहीं ही बल्कि असली एनसीपी यही है। उन्होंने एनसीपी के सभी विधायकों और सांसदों के समर्थन होने की बात कही है साथ ही चुनाव चिन्ह को लेकर भी दावा ठोक दिया है। यदि शिवसेना की तरह मामला कोर्ट में भी जाता है तो अजित पवार का पक्ष ज्यादा मजबूत नजर आ रहा है। मतलब ऐसा होता है तो शरद पवार को अपनी पार्टी और चुनाव चिन्ह से हाथ धोना पड़ सकता है।
शरद पवार की सहमति तो नहीं?
महाराष्ट्र में आज जो कुछ भी हुआ उनके थोड़ा गहन तरीके से गौर करें तो कुछ और ही बात निकल कर सामने आएगी। शरद पवार को काफी चालक नेता माना जाता है, इतनी आसानी से उनकी पार्टी के टूट जाने की बात हजम नहीं हो सकती है। एक बात और भी हजम नहीं हो रही कि एनसीपी के बड़े नेता जैसे प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल और दिलीप वलसे पटेल भी अजित पवार के साथ हैं। ये वही नेता ही जिन्होंने शरद पवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा वापस लेने पे विवश कर दिया था। सभी शरद पवार के भरोसेमंद थे। ऐसे में इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि कहीं पुरी घटना के पीछे शरद पवार की सोची समझी रणनीति तो नहीं है।
इस दावे को मजबूत करने के लिए दो बातों का हवाला दिया जा सकता है। पहला जब अजित पवार राजभवन जाने से पहले अपने विधायकों के साथ बैठक कर रहे थे उस वक्त शरद पवार ने क्या कहा। शरद पवार ने तो साफ तौर पर कहा था कि अजित पवार विधायक दल के नेता है इसलिए विधायकों के साथ बैठक करना उनका अधिकार है। उनके इस बयान से ऐसा ही लग रहा जैसे उन्हें सब पता हो या उन्होंने पहले ही अपने हथियार दल दिया।
दूसरा बात वो जो शपथ ग्रहण के बाद छगन भुजबल ने कहा, उन्होंने कहा कि शरद पवार खुद ये बात बोलते हैं कि एकबार फिर से मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे, जब बात ऐसी है तो भी भाजपा के साथ जाने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। छगन भुजबल की इस बात में तनिक भी सच्चाई हुई तो पूरी घटना के पीछे शरद पवार का अहम रोल हो सकता है।
महाराष्ट्र में होगा नागालैंड फोर्मुला
महाराष्ट्र में तो अभी एनसीपी ने भाजपा और शिवसेना(शिंदे गुट) को समर्थन दिया है। लेकिन इससे पहले नागालैंड में भाजपा सरकार को एनसीपी विधायकों का समर्थन मिल चुका है। दरअसल नागालैंड चुनाव के बाद भाजपा सत्ता में आई। एनसीपी के भी 7 विधायक ने भी भाजपा सरकार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। तब भी ऐसा लगा कि ये विधायक बागी हो गए हैं लेकिन नागालैंड एनसीपी के प्रमुख ने दावा किया कि उन्होंने हाईकमान यानि शरद पवार से बात करने के बाद ही ये फैसला लिया है कि एनसीपी के विधायक भाजपा को समर्थन देंगे।
वही जब शरद पवार से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम भाजपा के साथ नहीं लेकिन नागालैंड में विधायकों का मं तह कि वो अलग-थलग नहीं रहेंगे इसलिए उन्हें भाजपा को समर्थन देने की मंजूरी दी गई। ऐसा हो सकता है कि महाराष्ट्र में भी नागालैंड वाला फोर्मुला अपनाया जाए और शरद पवार ये कहे की उनके पार्टी केसभी का मं था जिस करना उन्हें झुकना पड़ा। हालांकि अधिकारिक रूप से इस विषय पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। सारा मामला तभी साफ होगा जब शरद पवार की प्रतिक्रिया सामने आएगी।