भाजपा की अगुवाई वाली NDA के खिलाफ विपक्षी दलों का गठबंधन ‘I.N.D.I.A’ तैयार हो गया है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इसके पीछे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया है। नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के लिए अगुआ का काम किया है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इसके लिए उन्हें इनाम के रूप में ‘I.N.D.I.A’ का संस्थापक समन्वयक बनाया जाएगा या नहीं? हालांकि इस बात के आसार हैं कि मुंबई में होने वाली ‘I.N.D.I.A’की बैठक में नीतीश की नियति पर फैसला होगा। नीतीश कुमार संस्थापक समन्वयक बन भी गए तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ‘I.N.D.I.A’ के जीतने के बाद वो प्रधानमंत्री भी बनेंगे। भारतीय राजनीति का इतिहास इस बात का प्रमाण रहा है।
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समन्वयक के लिए वेटिंग लिस्ट में नीतीश
विपक्षी दलों की दो बैठकों में अभी तक सिर्फ गठबंधन का नाम तय हो सका है। दोनों बार की बैठक से पहले ये अनुमान लगाया जा रहा था कि इसबार गठबंधन के संस्थापक समन्वयक के नाम की घोषणा कर दी जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दूसरी बैठक में ये तय किया गया कि 11 सदस्यीय समन्वयक मंडल बनाया जाएगा। यह समन्वयक मंडल साझा चुनावी कार्यक्रम और लोकसभा सीटों के बंटवारे से संबंधित मुद्दों को सुलझाएगा। इस समन्वयक मंडल में समन्वयक या संयोजक की अहम भूमिका होगी। इसके लिए सबसे आगे नाम नीतीश कुमार का ही चल रहा है। ऐसी खबरें हैं कि मुंबई में होने वाली ‘I.N.D.I.A’ की बैठक में नीतीश कुमार के नाम पर मुहर लग सकती है। फिलहाल नीतीश कुमार वेटिंग लिस्ट में हैं।
आसान है नीतीश की स्वीकार्यता
एक बड़ा सवाल ये भी है कि समन्वयक के लिए नीतीश कुमार ही क्यों? इसकी पहली वजह ये है कि विपक्षी दलों को एक टेबल पर लाने में उनकी अहम भूमिका रही है। दूसरी बड़ी वजह ये है कि ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की वहां के क्षेत्रीय दलों से मतभेद है। राष्ट्र स्तर पर वो कांग्रेस के साथ जरुर दिख रहे हैं लेकिन राज्य स्तर पर कई जगह अभी भी टकराव है। ऐसे जगहों पर गठबंधन के नेता के रूप में नीतीश कुमार की स्वीकार्यता आसान है।
समन्यवक टू PM पद की गारंटी नहीं, इतिहास गवाह
चर्चाएं ये हैं कि समन्वयक बनना कहीं ना कहीं जीत के बाद प्रधानमंत्री पद की गारंटी होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि समन्वयक बनना इस बात की गारंटी नहीं है कि जीत के बाद प्रधानमंत्री पद मिल जाए। इसके लिए वो भारतीय राजनीति के इतिहास का हवाला देते हैं। नब्बे के दशक में एक गठबंधन था राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन उसमें अग्रणी भूमिका में रहने वाले वामपंथी नेता हरिकिशन सिंह थे, लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम पर चर्चा तक नहीं थी।
NDA के पहले संयोजक रहे जार्ज फर्नाडिस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, वो संयोजक तो जरुर थे लेकिन एनडीए की जीत के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी बने। दो बार UPA की सरकार बनने के बाद भी UPA की चेयरपर्सन सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बनी। 2008-2013 तक शरद यादव NDA के संयोजक पद पर रहे लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम पर चर्चा ना के बराबर रही।