बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं। सत्ता में रहते हुए पार्टी नेतृत्व से ठनने पर लालू यादव ने जिस पार्टी की नींव रखी, वो राज्य की सत्ता में सालों तक रही है। लेकिन 21वीं सदी के शुरू होने के बाद सबकुछ बदलता गया। विधानसभा स्तर पर तो राजद अभी भी सत्ता में है। लेकिन लोकसभा के स्तर पर राजद के बुरे दिनों का अंत होना अभी शेष है। लोकसभा चुनावों में आखिरी बार 2004 में राजद ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इसके बाद हुए तीन चुनावों में एक दो बार लालू यादव के नेतृत्व में राजद की मिट्टी पलीद हुई है। एक बार तेजस्वी के नेतृत्व में राजद शून्य तक पहुंचा है। अब 2024 में दोनों मिलकर राजद को नेतृत्व देने की तैयारी में हैं, लेकिन सर्वे बता रहे हैं कि इस बार भी दोनों फेल ही होंगे।
सत्ता में रहते हुए जीती थी सर्वाधिक सीटें
राजद का लोकसभा चुनावों में सबसे बेहतर प्रदर्शन 2004 में था। तब के लोकसभा चुनाव में राजद ने बिहार की 40 में से 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यूपीए की सरकार भी बनी और लालू यादव केंद्र में मंत्री भी बने। बात गठबंधन की करें तो उस वक्त यूपीए को कुल 29 सीटें मिली थी। इसमें लोजपा के खाते में 4 और कांग्रेस के खाते में 3 सीटें गईं थी। तब बिहार में राजद की सरकार थी। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं। लेकिन यह आखिरी चुनाव था जब लोकसभा में राजद सांसदों की संख्या दहाई आंकड़े में पहुंची थी। इसके बाद राजद के दहाई आंकड़ा सपना बनकर रह गया।
लालू के नेतृत्व में दो चुनावों में राजद फेल
2004 के लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद राजद को बड़ा झटका 2005 में लगा। तब राजद की सरकार चली गई और एनडीए की सरकार में नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के शिखर तक पहुंचे। राजद को अगला झटका 2009 में लगा। तब नए परिसीमन में हुए लोकसभा चुनाव में राजद को सबसे बड़ा झटका लगा। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव दो सीटों पर चुनाव लड़े थे, एक ही सीट जीत सके। 2009 के चुनाव में राजद को सिर्फ 4 सीटें मिलीं। राजद के चार वरिष्ठ नेता ही अपनी सीट बचा सके। इसमें सारण से लालू यादव, बक्सर से जगदानंद सिंह, वैशाली से रघुवंश प्रसाद सिंह और महाराजगंज से उमाशंकर सिंह जीते थे।
2014 में भी लालू का मैनेजमेंट फेल
2009 के चुनाव में राजद को मिली बुरी हार के बाद भी पार्टी और नेताओं की मुश्किलें कम नहीं हुईं। चारा घोटाला में लालू यादव के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग गई। हालांकि जदयू और भाजपा की जोड़ी टूटने पर लालू यादव को उम्मीद थी कि उनकी पार्टी का रिवाइवल हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी की आंधी में राजद एक बार फिर चार सीटें ही 2014 में जीत सका। तब अररिया से सरफराज आलम, बांका से जयप्रकाश यादव, मधेपुरा से पप्पू यादव और भागलपुर से शैलेश मंडल राजद के टिकट पर चुनाव जीते। राजद की सीटें भाजपा और लोजपा को छोड़कर दूसरे सभी दलों से अधिक थीं लेकिन बिहार में कभी आधा से सीटों पर कब्जा रखने वाले राजद का यह सबसे बुरा दौर ही था क्योंकि पहली बार चुनाव लड़ी लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती भी चुनाव हार गईं थीं।
तेजस्वी की पहली और करारी हार
चुनावी राजनीति में लालू यादव के आउट हो जाने और मीसा भारती की लांचिंग फेल हो जाने के बाद तेजस्वी यादव ने अपना पहला चुनाव 2015 में लड़ा। विधायक आसानी से बने और डिप्टी सीएम भी बने। जदयू और राजद-कांग्रेस के गठबंधन में बिहार में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। लेकिन यह गठबंधन 2017 में टूट गया। इसके बाद लालू यादव को जेल जाना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़े राजद को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। मीसा भारती एक बार फिर हारीं। साथ ही राजद पहली बार कोई भी सीट नहीं जीत सका। तेजस्वी यादव के लिए यह बड़ा धक्का था और यह दाग अभी भी बरकरार है।
2024 में भी आसार कम?
तेजस्वी यादव की 2019 में करारी हार के बाद 2020 के विधानसभा में भी उनकी हार ही हुई। हालांकि 2022 में नीतीश कुमार के साथ हो जाने के कारण उनकी सत्ता में वापसी हो गई। अब सबकी नजरें 2024 की लोकसभा सीटों पर है। लेकिन यहां से अभी अच्छी खबर राजद के लिए नहीं दिख रही है। क्योंकि इंडिया टीवी और सीएनएक्स के सर्वे में राजद एक बार फिर लोकसभा चुनाव में दहाई अंक तक नहीं पहुंचता दिख रहा है। सर्वे इस आधार पर किया गया है कि आज बिहार में लोकसभा चुनाव होते हैं, तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी। सर्वे के मुताबिक राजद सात सीटों पर चुनाव जीत सकता है। जो 2009, 2014 और 2019 से निश्चित तौर पर बेहतर है लेकिन राजद के 2004 के रिकॉर्ड के सामने कुछ भी नहीं है।