बिहार में महागठबंधन की सरकार अपना एक साल पूरा कर चुकी है। इस बीच बिहार में सरकार का नया मॉडल ऐसा हिट हुआ कि भाजपा को अलग-थलग करने की सीख बिहार से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने की पहल शुरू हुई। लेकिन बड़े मकसद को पूरा करने की कोशिशों के बीच छोटी दरारें उभर आती हैं, तो बातें शुरू हो जाती हैं। बिहार में बीते चार दिनों में तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसने राज्य की राजनीति में नए कयासों को जन्म देने की शुरुआत की है। दरअसल, मामला राज्य के स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा हुआ है। इस विभाग के मंत्री डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव हैं। पांच दिनों तक भाजपा को हराने के मंसूबे बनाने, दिल्ली दौरे पर रहे तेजस्वी यादव ने पटना वापस लौटते ही अपनी पार्टी के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को विभाग के कामकाज पर ध्यान देने की नसीहत दी। या ऐसा भी कह सकते हैं निर्देश दिया। लेकिन तेजस्वी यादव अपने इस जोशीले अंदाज में अपने ही विभाग की सुध लेना भूल गए। भूलने की बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि राज्य में बड़े अधिकारियों को उनके विभाग पर भरोसा कम होने की तस्वीरें सामने आई हैं। साथ ही स्वास्थ्य विभाग की बड़ी परियोजनाओं के उद्घाटन में भी तेजस्वी यादव गैरमौजूद रहे।
दो बड़ी परियोजनाओं के उद्घाटन में नहीं पहुंचे तेजस्वी
तेजस्वी यादव बिहार के स्वास्थ्य मंत्री हैं। मंत्रालय संभालने के तुरंत बाद तो तेजस्वी यादव ने ऐसे औचक निरीक्षण किए, जैसे लगा कि अस्पतालों के दिन बहुरने में वक्त नहीं लगेगा। लेकिन एक साल बाद जब पटना के डीएम डॉ. चंद्रशेखर सिंह डेंगू से पीड़ित हुए, तो उन्हें डेंगू के इलाज के लिए भी सरकारी नहीं निजी अस्पताल में ही भर्ती होना पड़ा। मामला यहीं नहीं थमा। राज्य के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी भी बीमार पड़े तो उन्हें भी निजी अस्पताल में ही जाना पड़ा।
राज्य के अधिकारियों की सरकारी व्यवस्था पर अविश्वास दिखा रही स्थिति में भी स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव राज्य के स्वास्थ्य से जुड़ी दो बड़ी परियोजनाओं के उद्घाटन में नहीं पहुंचे। पहली परियोजना मुजफ्फरपुर में होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केन्द्र में ऑपरेशन थियेटर का उद्घाटन व नर्सिंग छात्रावास का शिलान्यास थी, जो 14 सितंबर को हुआ और तेजस्वी यादव की गैर मौजूदगी में सीएम नीतीश कुमार ने किया। दूसरी परियोजना नालंदा चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में विभिन्न योजनाओं के शिलान्यास, उद्घाटन एवं लोकार्पण से जुड़ी है। इसमें भी तेजस्वी यादव मौजूद नहीं थे और सीएम नीतीश कुमार ने ही इसे हरी झंडी दी।
नीतीश-तेजस्वी के रिश्तों पर उठने लगे सवाल
बिहार में राजनीतिक स्थिति ऐसी रही है कि कई बार बिना बात के भी नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ने की अटकलें लगाई जाने लगती है। नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन का लंबा वक्त भाजपा के साथ बीता है। अटल युग से लेकर मोदी युग तक नीतीश कुमार भाजपा के साथ रहे हैं। लेकिन अभी तो नीतीश कुमार ने भाजपा से बिल्कुल किनारा कर लेने की बात दर्जनों बार दुहराई है। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग की परियोजनाओं का बिना स्वास्थ्य मंत्री के उद्घाटन होने की स्थिति पर सवाल यह उठने लगे हैं कि क्या नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच सबकुछ ठीक है? या फिर एक बार फिर कहीं ये अलग हो रहे हैं?
बेंगलुरु की बैठक के बाद बदला तेजस्वी का झुकाव?
दरअसल, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के रिश्तों पर अगर सवाल खड़े हो रहे हैं, तो ये सवाल भी एक बार में नहीं उठे। दरअसल, लंबे समय से ऐसे संकेत मिले हैं, जिसने बिहार की राजनीति में इन नई अटकलों को जन्म दिया है। कहानी शुरू होती है, जुलाई में बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों के बैठक के बाद। इस बैठक में शामिल होने नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और लालू यादव एक साथ एक ही फ्लाइट से गए और वापस लौटे। लेकिन बैठक में नीतीश कुमार के नाराज होने की बात उठने लगी। तब से अब तक कई मौके आए हैं, जब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव का अलगाव दिखा है।
- पहला मौका : मलमास मेले के उद्घाटन और समापन दोनों में तेजस्वी यादव नहीं गए। यह मेला पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित किया गया था और राजगीर में था। चूंकि तेजस्वी यादव पर्यटन विभाग के भी मंत्री हैं, तो यह स्वाभाविक स्थिति थी कि उद्घाटन और समापन समारोह में वे शामिल होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जबकि दोनों समारोहों में सीएम नीतीश कुमार मौजूद रहे।
- दूसरा मौका : बेंगलुरु के बाद I.N.D.I.A. की बैठक मुंबई में हुई। इस बैठक में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों शामिल हुए। लेकिन बेंगलुरु की तरह दोनों साथ में मुंबई नहीं गए और न ही साथ लौटे। तेजस्वी यादव अपने पर्यटन विभाग के कार्यक्रम मलमास मेले का समापन समारोह छोड़कर बैठक से एक दिन पहले ही लालू यादव के साथ मुंबई निकल गए।
- तीसरा मौका : 14 सितंबर को मुजफ्फरपुर में होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केन्द्र में ऑपरेशन थियेटर का उद्घाटन व नर्सिंग छात्रावास का शिलान्यास हुआ, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर तेजस्वी की मौजूदगी स्वाभाविक होती। लेकिन 13 सितंबर को दिल्ली में हुई I.N.D.I.A. की को-ऑर्डिनेशन कमेटी की बैठक में भाग लेने 12 सितंबर को ही रवाना हुए तेजस्वी बिहार से बाहर थे। इसका उद्घाटन भी सीएम नीतीश कुमार ने अकेले किया।
- चौथा मौका : 15 सितंबर को नालंदा चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में विभिन्न योजनाओं के शिलान्यास, उद्घाटन एवं लोकार्पण समारोह में भी तेजस्वी यादव शामिल नहीं हुए। वे दिल्ली में ही थे। हालांकि 15 सितंबर को ही शाम में तेजस्वी यादव पटना लौट आए।
- पांचवा मौका : भाजपा के साथ गठबंधन समाप्त करने के बाद नीतीश कुमार भाजपा के बड़े नेताओं से दूरी बनाने लगे। वे उन बैठकों में भी नहीं जाते थे, जिसमें बतौर मुख्यमंत्री उन्हें शामिल होना था। लेकिन जी 20 डिनर में नीतीश कुमार शामिल हुए। जबकि यह कयास पहले से थे कि वहां शामिल हुए तो पीएम नरेंद्र मोदी से उनका सामना होगा। हुआ भी ऐसा ही। पीएम मोदी और सीएम नीतीश हंसते हुए मिले, बातें की और हर एक्टिविटी की फोटो वायरल हुई।
- छठा मौका : नीतीश कुमार ने बिहार दौरे पर आए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की। यह शिष्टाचार मुलाकात कही जा सकती है। चूंकि रामनाथ कोविंद पूर्व राष्ट्रपति हैं और बिहार के राज्यपाल रहते हुए ही उन्होंने राष्ट्रपति चुना गया था। लेकिन रामनाथ कोविंद का एक नया परिचय भी है, कि वे वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी के चेयरमैन भी बनाए गए हैं। तेजस्वी यादव ने सिरे से वन नेशन वन इलेक्शन की सोच को खारिज किया है, इसकी खिलाफत की है। इसके बावजूद नीतीश कुमार का रामनाथ कोविंद से मिलने के बाद अलग खुसुर-फुसुर पैदा कर रही है।