केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है। जिसकी शुरुआत आज यानि 18 सितंबर से होने जा रही है। चार दिनों तक चलने वाले इस विशेष सत्र में 4 बिल पेश किए जाएंगे। इन चारों में से एक बिल की चर्चा खुब हो रही है। जो कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त, अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा शर्त विधेयक 2023 है। ये बिल सीधे तौर पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति में प्रक्रिया में बदलाव से जुड़ा है। इसमें चुनाव आयुक्तों का दर्जा घटाकर कैबिनेट सचिव के बराबर किए जाने का विरोध भी हो रहा है। इसी को लेकर देश के 9 पूर्व चुनाव आयुक्तों ने PM मोदी को खत लिखा है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों का कहना है कि ऐसा करने पर चुनाव के निष्पक्षता पर सवाल खड़ा होगा।
दर्जा घटाने को लेकर सवाल
जिन 9 पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने PM मोदी को खत लिखा है उसमें एस. कृष्णमूर्तिा, एसवाई कुरैशी, एचएस ब्रह्म, सैयद नसीम जैदी, ओपी रावत और सुशील चंद्र का नाम शामिल है। उनका कहना है कि चुनाव आयुक्तों का दर्जा घटाकर एक कैबिनेट मंत्री के बराबर करने से ऐसा संदेश जाएगा कि ये भी नौकरशाह हैं। पूर्व चुनाव आयुक्तों ने अपने खत में लिखा है कि ‘इस बिल के प्रावधानों से यह संदेश जाएगा कि चुनाव आयुक्त भी नौकरशाहों जैसे ही हैं। उनमें कुछ अलग नहीं है। इससे यह धारणा भी खत्म हो जाएगी कि चुनाव आयुक्त नौकरशाही से अलग हैं।’
संविधान के आर्टिकल 325 का जिक्र
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने अपने कहता में संविधान के आर्टिकल 325 का भी जिक्र किया है। उनका कहना है कि आर्टिकल 325 में ये कहा गया है कि चुनाव आयुक्त को महाभियोग के तहत ही हटाया जा सकता है, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाया जाता है। इससे ये स्पूपष्र्वट है कि संविब्धन भी चुनाव आयुक्त को वो दर्जा देता है जो सुप्रिम कोर्ट के जज का है। मुख्य चुनाव आयुक्तों ने लिखा, ‘भारत में चुनावों को पूरी दुनिया में देखा जाता है। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और आयुक्तों का एक सम्मान रहा है और उन्हें गरिमा के साथ देखा जाता है। इसकी वजह भारत में सिर्फ निष्पक्ष चुनाव होना ही नहीं है बल्कि चुनाव आयुक्तों को मिला सुप्रीम कोर्ट के जज का दर्जा भी है। इसकी वजह से पूरी दुनिया में यह धारणा रही है कि भारत का चुनाव आयोग सरकार से मुक्त है।’