बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट के बारे में प्रचलित है- रोम पोप का तो मधेपुरा गोप का। मतलब इस सीट को यादवों का गढ़ कहा जाता है। लेकिन ये वही सीट रही है जहाँ बिहार के तीन सबसे बड़े यादव नेता को मुंह की खानी पड़ी है। हालाँकि इसी सीट ने उन्हें संसद भवन तक भी पहुँचाया । ये तीनों दिग्गज नेता कोई और नहीं बल्कि लालू यादव, शरद यादव और पप्पू यादव हैं। शरद यादव सबसे ज्यादा 4 बार यहाँ से सांसद चुने गए लेकिन इससे ज्यादा बार उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा। यादव के सबसे बड़े नेता के रूप में खुद को स्थापित करने वाले और बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू यादव को भी पहले यहाँ जीत नसीब हुई बाद में उन्हें हार का कड़वा स्वाद भी चखाना पड़ा। पप्पू यादव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
मधेपुरा का राजनीतिक इतिहास

राजनीतिक इतिहास के दृष्टिकोण से मधेपुरा को दो कालखंडों में विभाजित किया जा सकता है। पहला है शरद, लालू और पप्पू के पहले यानि 1967 से 1989 तक का और दूसरा 1991 के बाद का कालखंड। सबसे पहले पहले वाले काल खंड के बारे में जान लीजिये। 1967 में यहाँ के पहले सांसद संयुक्ता सोशलिस्ट पार्टी के बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल बने। 1968 में भी वो सांसद चुने गए। 1971 में कांग्रेस के चौधरी राजेंद्र प्रसाद यादव, 1977 में भारतीय लोकदल के बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल, 1980 में कांग्रेस के चौधरी राजेंद्र प्रसाद, 1984 में कांग्रेस चौधरी महाबीर प्रसाद यादव, 1989 में जनता दल में चौधरी रामेंद्र कुमार यादव रवि सांसद बने।
इसके बाद 1991 में मधेपुरा की राजनीति में एंट्री होती है शरद यादव की।1991 और 1996 में जनता दल के शरद यादव ने यहाँ से चुनाव जीता। लेकिन लालू यादव ने 1998 में शरद यादव को पटखनी दे दी। इस सीट पर ये लालू यादव की पहली जीत और शरद यादव की पहली हार थी। इसके एक साल बाद 1999 के चुनाव में शरद यादव ने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और राजद चीफ लालू यादव को हरा दिया। 2004 में लालू यादव ने फिर से वापसी की। लेकिन दो जगह से चुनाव जीतने के कारण इस सीट से उन्होंने इस्तीफा दे दिया। 2004 के उपचुनाव में राजद उम्मीदवार पप्पू यादव ने जीत हासिल की। 2009 के चुनाव में पप्पू यादव को हरा कर शरद यादव चौथी बार मधेपुरा से सांसद बने। शरद यादव ने 2014 भी यहां जदयू के उम्मीदवार के तौर पर लड़े लेकिन राजद के पप्पू यादव ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद शरद यादव आरजेडी में शामिल हो गए और 2019 में फिर लालू की पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। मगर इस बार उन्हें जेडीयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव से हार का सामना करना पड़ा।
यादवों का वर्चस्व
मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में यादव वोटरों की संख्या करीब 22 फीसदी है। यही कारण है कि यादव वोटरों का वर्चस्व दिखने को मिलता है। यहाँ अब तक के ज्यादातर जीते सांसद भी यादव समाज से आते हैं। यादव के अलावा मुस्लिम वोटरों की संख्या भी करीब 13 फीसदी है। इसलिए यहाँ MY समीकरण का खेल भी खूब देखने को मिलता है। गौर करने वाली बात ये कि इस सीट पर भाजपा का एक भी उम्मीदवार आज तक नहीं जीत सका है।
मधेपुरा लोकसभा के अंर्तगत आने वाले विधानसभा सीट
इस लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्र के बारे में जान लेते हैं। मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीट हैं। जिसमें से 4 पर जदयू का कब्ज़ा है। जबकि 1-1 सीट पर भाजपा और राजद का कब्ज़ा है। आलमगर से जदयू के नरेंद्र नारायण यादव,बिहारीगंज से जदयू के निरंजन कुमार मेहता, मधेपुरा से राजद के प्रो. चन्द्रशेखर सोनबरसा से जदयू के रत्नेश सादा सहरसा से भाजपा के आलोक रंजन झा, महिषी से जदयू के ग़ुंजेश्वर साह विधायक हैं।
