तीन बैठकों के बाद भाजपा और एनडीए के खिलाफ बना I.N.D.I.A. की बैठकों का मुहूर्त नहीं बन रहा है। I.N.D.I.A. के भविष्य की जब भी बात होती है तो इसमें शामिल दलों के नेता यही कहते दिखते हैं कि आपसी टकराव और मतभेद होने के बावजूद 26 पार्टियां एक साथ बैठी, INDIA एलायंस का फॉर्मूला तैयार हुआ, अलग अलग कमेटियां गठित हुई। लेकिन इसके बाद की प्रक्रिया सुस्त पड़ गई। आज की स्थिति यह है कि बिहार में नीतीश कुमार भाजपा के साथ दोस्ती नहीं तोड़ने वाला गाना गा रहे हैं। तो दूसरी ओर उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव को डाउन करने के लिए कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में उन्हें गठबंधन से बेदखल कर दिया है। तो सवाल यह है कि क्या कांग्रेस ने अपनी महत्वकांक्षा के लिए गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार और सबसे बड़े राज्य के सबसे बड़े दल के नेता अखिलेश यादव को गठबंधन से ड्रॉप कर दिया है?
अखिलेश ने तो कर दिया साफ
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से कोई गठबंधन नहीं किया है। सपा की उस सीट पर भी कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित कर दिया है, जिस पर 2018 में समाजवादी पार्टी जीती थी। अखिलेश यादव का दावा है कि कांग्रेस ने उनसे बात भी नहीं की। इसके बाद अखिलेश यादव कांग्रेस से नाराज हैं। जबकि यूपी की कांग्रेस अखिलेश से बड़ा दिल दिखाने की उम्मीद पाले हुए है, तो एमपी की कांग्रेस अखिलेश यादव का नाम तक नहीं सुनना चाहती। यूपी में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने तो अखिलेश की नाराजगी पर उन्हें भाजपा की बी टीम भी बता दिया। अजय राय ने कहा कि यूपी की घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा, सपा को समर्थन दिया। नतीजा यह हुआ कि सपा उम्मीदवार बड़े अंतर से जीता। जबकि उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर कांग्रेस के सामने सपा ने उम्मीदवार उतार दिया। नतीजा यह हुआ कि भाजपा जीत गई। अजय राय के इस रुख ने यूपी में कांग्रेस-सपा की संभावित दोस्ती को आशंकित कर दिया है।
बिहार में मामला डांवाडोल
दूसरी ओर बिहार में नीतीश कुमार को एक बार फिर भाजपा की दोस्ती याद आ रही है। सार्वजनिक तौर पर कसम खाने वाले अंदाज में नीतीश कुमार कह रहे हैं कि भाजपा के साथ वे दोस्ती जब तक जिंदा रहेंगे, निभाते रहेंगे। भले ही उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह इसे मीडिया का खेल बताएं, लेकिन जिस धुएं के गुबार को ललन सिंह इग्नोर कर रहे हैं, इतना तो यह है कि वह धुआं नीतीश कुमार द्वारा जलाई आग से ही निकला है। दूसरी ओर बिहार कांग्रेस नीतीश कुमार से बहुत खुश नहीं है। इसका कारण यह है कि भाजपा के साथ दोस्ती की कसमें खाने के साथ नीतीश कुमार ने मनमोहन सरकार पर निशाना भी साध दिया था। इसके अलावा बिहार मंत्रिमंडल में कांग्रेस की सीटें बढ़ाने के प्रस्ताव पर नीतीश कुमार ने बात आगे नहीं बढ़ाई।