[Team insider] झारखण्ड में पुलिस के सामने हथियार डालने वाले नक्सलियों को अब हीरो की तरह पेश किया जा रहा है। खूंखार नक्सलियों के आत्मसमर्पण के साथ ही उनके द्वारा पुलिस अधिकारी, पुलिस जवान,ग्रामीणों और मासूमों की निर्मम हत्या,अपहरण,मासूम बच्चों को मां बाप से जबरन छीन कर संगठन से जोड़ने के कारनामे को लोग भूल जा रहे है। यह भी भूल जा रहे है कि किस तरह नक्सलियों की वजह से कई परिवार टूट कर बिखर गए।कई सुहागनों का सुहाग उजड़ गया।कई बच्चों के सर से पिता का साया उठ गया। नक्सलियों की लेवी की डिमांड की वजह से पूरा समाज दहशत के दौर से गुजरा।
युवाओं पर पड़ता सबसे ज्यादा असर
दरअसल नक्सलियों के आत्मसमर्पण के बाद इस पर इसलिए चर्चा शुरू हो गई है। क्योंकि खूंखार नक्सलियों के शिकार पुलिस, जो नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने में कड़ी मशक्कत करते हैं। उनके प्रयास से कहीं ज्यादा आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की ‘कथित गुणों’ और उनके ‘अधूरे सपनों’ की चर्चा शुरू हो जाती हैं। ऐसे में युवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है। क्योंकि अगर सैकड़ों हत्या और नक्सल वारदात को अंजाम देने वाले खूंखार नक्सलियों को हीरो की तरह पेश किया जाएगा तो उसे युवा अपना ‘आइकन’ मानने लगेंगे। जिसका भयावह परिणाम हमेशा मिलता रहेगा।
तो कानून व्यवस्था की जरूरत ही नहीं
अब जरा सोचिए कि अगर किसी नक्सली के आत्मसमर्पण करने के बाद वह कहे की वह अच्छा आदमी बनना चाहता था। लेकिन उस पर और उसके परिवार पर हुए अत्याचार ने उसे नक्सल की दुनिया में कदम रखने के लिए मजबूर कर दिया। तो क्या इसे आसानी से मान लेना चाहिए। अगर यह सही है तो कानून व्यवस्था की जरूरत ही नहीं है। बल्कि लोगों को हथियार ही उठा लेना चाहिए। इन सबसे परे अगर यह कहा जाए कि शोषण के शिकार लोगों को कानून के तहत इंसाफ नहीं मिल रहा है। तो यह सीधे तौर पर आरोप होगा।
महाराज प्रमाणिक पुलिस वाला बनना चाहता था
अब अगर बात करें आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को हीरो की तरह पेश करने की, तो शुक्रवार को 10 लाख इनामी खूंखार नक्सली महाराज प्रमाणिक के पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया। जिसके बाद यह बात सामने आई कि वह पुलिस वाला बनना चाहता था। मां पर हुए अत्याचार की वजह ने उसे नक्सली बना दिया। महाराज के बयान के अनुसार उसकी मां आंगनवाड़ी सेविका थी और एक चबूतरा निर्माण को लेकर उसकी मां की हत्या की साजिश रची गई थी। हालांकि उसकी मां बच गई। लेकिन इस विवाद में महाराज को जेल जाना पड़ा। जेल से लौटने के बाद उसकी दुश्मनी गांव वालों से हो गई और न्याय न मिलने पर उसने माओवादियों के जन अदालत में न्याय की गुहार लगाई। जिसके बाद उसका संपर्क नक्सलियों से हुआ और उसने भाकपा माओवादी ज्वाइन कर लिया।
मजबूरी में करनी पड़ती थी मासूमों की हत्या
ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि महाराज प्रमाणिक की तरह अत्याचार के शिकार माओवादियों की जन अदालत में पहुंचने वाले सभी ग्रामीणों ने हथियार क्यों नहीं उठाया। उन सभी ग्रामीणों को भी हथियार उठा लेना चाहिए था। सवाल यह भी है कि जब महाराज ने अपनी मां पर हुए अत्याचार के बाद हथियार उठाया। तब उसने मासूमों की हत्या क्यों की। इसको लेकर महाराज का बयान है कि मासूमों की हत्या मजबूरी में करनी पड़ती थी। जिसपर अफसोस भी होता था। क्या इसे माना जा सकता है।
नक्सलियों की वजह से उजड़ गए कई घर
महाराज जैसे खूंखार नक्सली की वजह से कई घर उजड़ गए होंगे। कई सुहागन विधवा हो गई होंगी और कई बच्चों के सर से उनके पिता का साया उठ गया होगा। नक्सलियों के शिकार परिवारों में सबसे ज्यादा देश और समाज की रक्षा के लिए अपने घर बार से दूर रहने वाले पुलिस वाले शामिल होंगे। ऐसे में खूंखार नक्सली महाराज यह कहे कि मजबूरी में उसके द्वारा संगठन के लिए हत्या की गई। तो वह कितना सही होगा।
युवाओं के लिए आइकन बनना कोई गलत बात नहीं
ऐसा नहीं है कि सिर्फ 10 लाख इनामी खूंखार नक्सली महाराज प्रमाणिक की ऐसी कहानी है। जब जब बड़े नक्सली पुलिस के सामने हथियार डालते हैं। तो इसी तरह की अत्याचार की दास्तान सुनाई जाती है और इसकी वजह से नक्सली संगठन में शामिल होने की बात नक्सलियों के द्वारा कही जाती है। क्या नक्सलियों के इस कहानी को सच मान लेना चाहिए। अगर नक्सलियों के इस कहानी को सच मान लिया जाए और इन हत्यारे नक्सलियों को इसी तरह प्रमोट किया जाता रहे। तो इनका युवाओं के लिए आइकन बनना कोई गलत बात नहीं होगी।