[Team insider] 23 जनवरी यानी उस शख्स की जयंती(Birthday) जिसके बिना देश की आजादी की कल्पना नहीं की जा सकती है। जी हां हम बात कर रहे हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की। नेताजी का जन्म कोलकाता के एक रईस बंगाली परिवार में 23 जनवरी 1927 को हुआ था। पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। यदि सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर बात करें तो शायद कागज के पन्ने कम पड़ जाएंगे। हम आज बात कर रहे हैं सुभाष चंद्र बोस के झारखंड कनेक्शन की। यानी उस वक्त जब अविभाजित बिहार था।
पूर्वी सिंहभूम के पोटका प्रखंड के कालिकापुर में 5 दिसंबर 1939 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस आए थे। बताया जाता है कि गांववालों ने जब इलाके के चरित्रहीन दारोगा के खिलाफ आवाज उठाई तो कई गांववालों पर फर्जी मुकदमा लाद दिया गया। इसके बाद गांव में नेताजी के कदम पड़े। गांववालों ने आज भी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी स्मृतियों को संजोकर रखा है।
मजदूर के वेश में आए थे यहां
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादें गिरिडीह जिला के सरिया मे स्थित प्रभाती कोठी से भी जुड़ी हुई है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने वर्ष 1915-20 के बीच में इस कोठी की नींव रखी थी। इस कोठी की नेताजी ने न केवल नींव रखी थी, बल्कि इसी में रहकर वे अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति भी बनाते थे। इसके लिए वे यहां मजदूर के वेश में आए थे। उन्होंने ही चांदी के बेलचा से सबसे पहले नींव में मिट्टी डाली थी। जानकार बताते हैं कि अंग्रेजों को नेताजी के यहां आने की सूचना मिल गई थी। उन्हें ढूंढ़ते हुए अंग्रेज सिपाही वहां पहुंच गए, लेकिन उसके पहले ही नेताजी वहां से जा चुके थे।
जमशेदपुर लेबर यूनियन के अध्यक्ष भी रहे
नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1928 से 1936 तक जमशेदपुर लेबर यूनियन के अध्यक्ष भी रहे। उनका धालभूम क्षेत्र से काफी लगाव था। 5 दिसंबर 1939 को जमशेदपुर से फोर्ड कार लेकर नेताजी पोटका प्रखंड के कलिकापुर गांव पहुंचे थे। उन्होंने कालिकापुर उच्च प्राथमिक विद्यालय वर्तमान में उत्क्रमित उच्च विद्यालय कलिकापुर में एक आम सभा भी की थी, जिसमें आसपास के गांव से हजारों संख्या में लोग शामिल हुए थे।
1940 में नेताजी खूंटी होते हुए रांची पहुंचे थे
मिली जानकारी के अनुसार 1940 में 18 से 20 मार्च तक रामगढ़ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का महत्वपूर्ण अधिवेशन हुआ था। दामोदर नदी के किनारे जंगलों के झुरमुट में इस अधिवेशन के लिए सैकड़ों पंडाल लगाए गए थे। इस ऐतिहासिक तीन दिवसीय अधिवेशन में ही ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की नींव पड़ी। रामगढ़ की धरती से ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अलग राह भी पकड़ ली और उन्होंने समानांतर अधिवेशन किया। नेताजी खूंटी होते हुए रांची पहुंचे थे और फिर रामगढ़ गए थे। लालपुर में वे स्वाधीनता सेनानी फणींद्रनाथ के घर रूके थे। फणींद्रनाथ के परिवार ने भी नेताजी से जुड़ी निशानियों को सहेज कर रखा है।
भारत रक्षा कानून की धारा 129 के तहत प्रेसीडेंसी भेजा गया था जेल
जानकारी के अनुसार नेताजी को 02 जुलाई 1940 को हॉलवेल सत्याग्रह के दौरान भारत रक्षा कानून की धारा 129 के तहत प्रेसीडेंसी जेल भेजा गया था। नेताजी गिरफ्तारी से नाराज होकर 29 नवंबर से अनशन पर बैठ गए थे। जिससे उनकी तबीयत खराब होने लगी थी। जिसके बाद अंग्रेजों ने रिहा करने के बाद नेताजी को एल्गिन रोड स्थित उनके आवास में रहने का आदेश दिया था। इससे भी अंग्रेजों का मन नहीं भरा तो उनके आवास पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया था। उक्त मामले में 27 जनवरी 1941 को सुनवाई होनी थी। जिसमें नेताजी को कठोर सजा मिलने वाली थी।
बीमा एजेंट मोहम्मद जियाउद्दीन बनकर गुजारे दिन
नेताजी को इस बात की भनक लग गई थी। वह आवास पर लगे पहरे को चकमा देकर 16 जनवरी की रात्रि उन्होंने कोलकाता से बरारी अपने भतीजे शिशिर चंद्र बोस के घर बेबी ऑस्ट्रियन कार(बीएलए/7169) से ग्रांड ट्रंक रोड होते हुए सुबह आसनसोल पहुंचकर कार में पेट्रोल भरवाया। इसके बाद उन्होंने धनबाद की राह ली, जहां बरारी में उनके एक और भतीजे अशोक बोस इंजीनियर के पद पर तैनात थे। यहां बीमा एजेंट मोहम्मद जियाउद्दीन बनकर वो दिन भर रहे और रात को अपने दोनो भतीजे और बड़े भतीजे की पत्नी के साथ गोमो स्टेशन आए, जहां से दिल्ली जाने के लिए पेशावर मेल (अब कालका मेल) पकड़ी और दिल्ली से फ्रंटियर मेल पकड़कर वो पेशावर पहुंचे।
आज गोमो स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्टेशन (Netaji Subash Chandra Bose Station) कर दिया गया है। यही वो जगह है जहां से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश की माटी को आखिरी बार सलाम किया था। निकलकर बंगाल की सरहद पार करने में कामयाब हो गए थे।
2009 में हुआ था स्टेशन का पुनर्नामकरण
धनबाद के समाजसेवी निभा दत्ता ने गोमो स्टेशन का नाम नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। गृह मंत्रालय के आदेश पर गोमो स्टेशन का नाम नेताजी सुभाषचंद्र बोस जंक्शन गोमोह रखा गया। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने 23 जनवरी 2009 में गोमो स्टेशन के बदले हुए नाम का अनावरण किया था।