बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाने वाले बिल को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसमें याचिकाकर्ता ने नए आरक्षण कानून को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया। याचिकाकर्ता ने नए आरक्षण कानून पर रोक लगाने की मांग की। लेकिन इस मामले में आज बिहार सरकार को बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने नए आरक्षण कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालाँकि कोर्ट ने बिहार सरकार से जवाब तलब किया है।
12 जनवरी को अगली सुनवाई
बता दें कि नए आरक्षण कानून के खिलाफ दायर याचिका पर आज पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें कोर्ट ने नए आरक्षण कानून पर तत्काल रोक लगाने से मना कर दिया। कोर्ट ने इस मामले में बिहार सरकार से जवाब मांगा है। बिहार सरकार को जवाब देने के लिए 12 जनवरी तक का समय दिया है। यानि इस मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी।
आरक्षण का दायरा 75 फीसदी तक
बता दें कि जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बाद बिहार सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने का निर्णय लिया। शीतकालीन सत्र के चौथे दिन 9 नवंबर को विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित कर दिया गया। विधान मंडल से पारित होने के बाद राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने 18 नवंबर को मुहर लगाई। जिसके बाद बिहार सरकार ने नए अधिनियम का गजट 21 नवंबर को प्रकाशित किया है। नए आरक्षण बिल में आरक्षण 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी तक कर दिया गया। वही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को नए लिमिट 65 फीसदी से अलग रखा गया। जिससे आरक्षण का दायरा बढ़कर 75 फीसदी हो गया।
आरक्षण का स्वरूप
बिहार आरक्षण बिल 2023 की तस्वीर कुछ इस तरह है। ओबीसी को 18 फीसदी, EBC को 25 फीसदी, SC को 20 फीसदी, एसटी को 2 फीसदी का आरक्षण मिलेगा। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण जोड़ कर बिहार में आरक्षण का दायरा 75 फ़ीसदी तक हो गया है।
याचिकाकर्ता की दलील
नए आरक्षण के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों में आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान था न कि जनसंख्या के अनुपात के अनुसार। बिहार सरकार द्वारा पारित अधिनियम संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह कानून सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है,वहीं भेद भाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक निर्धारित की है।