रामलला मंदिर का निर्माण भारतीय जनता पार्टी के दिन से पार्टी के एजेंडे में था। भारतीय जनता पार्टी का गठन वर्ष 1980 में किया गया। इस पार्टी में जनसंघ के अधिकांश नेता आ गए। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से पार्टी में कई नेताओं को दिया गया। इस पार्टी ने गठन के साथ ही राममंदिर निर्माण का आंदोलन चलाने का आंदोलन चलाया जाएगा। वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरा। उस चुनाव में पार्टी को महज दो सीटों पर जीत मिली। 1984 के लोकसभा चुनाव से कुछ पहले भाजपा ने राम मंदिर निर्माण की मुहिम छेड़ी। इसी बीच इंदिरा गांधी की हत्या हुई। सहानुभूति की लहर पर सवार राजीव गांधी ने रिकार्ड सीटों के साथ लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। राम मंदिर के मुद्दे का चुनाव में कोई खास असर नहीं दिखा।
फिर आया 2 नवंबर 1990, रामसेवकों के खून से लाल हो गई अयोध्या नगरी
हालांकि, लोगों के बीच राम मंदिर का मुद्दा चर्चा में लाने में भारतीय जनता पार्टी सफल जरूर हो गई। भाजपा ने लोगों को यह यकीन दिलाने का प्रयास शुरू किया कि राम मंदिर न बनने का कारण कांग्रेस पार्टी है। अयोध्या के रहने वाले और भाजपा के दो बार सांसद रहे रामविलास वेदांती इस बारे में कहते हैं कि लोगों ने हमारे आंदोलन से जाना कि कांग्रेस वह पार्टी है, जो राम मंदिर नहीं बनने देना चाहती है।
राजीव सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप
1984 के चुनाव में रिकॉर्ड 400 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस की राजीव सरकार कुछ ही दिनों बाद मुसीबत से घिर गई। तलाक पीड़िता मुस्लिम महिला शाहबानो को कोर्ट से गुजारा भत्ता दिए जाने का आदेश पारित किया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के लिए राजीव सरकार ने एक नया कानून ही बना दिया। इसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। नतीजा यह हुआ कि राजीव सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगे। इस छवि से बाहर निकलने और हिंदुओं को साधने के लिए राजीव सरकार एक दूसरा तरीका राम मंदिर का ताला खुलवाने पर लिया।
फैजाबाद कोर्ट ने राम मंदिर का केस चल रहा है। एक फरवरी 1986 को सुनवाई के बाद जज केएम पांडेय ने हिंदुओं को पूजा के लिए बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश। विवादित स्थल पर रामलला की मूर्ति रखी गई थी। तत्कालीन कलक्टर के सुझाव पर मस्जिद के भीतर जाकर पूजा किए जाने पर रोक लगी हुई थी। 37 साल बाद कोर्ट का फैसला आते ही आनन- फानन में राजीव सरकार ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा दिया। राजीव सरकार की इस तेजी के पीछे का कारण शाहबानो प्रकरण में हुए नुकसान की भरपाई किए जाने की चर्चा की गई।
सरकार के फैसले ने भाजपा को दे दी ताकत
राजीव सरकार के इस फैसले ने भारतीय जनता पार्टी और हिंदुत्व की राजनीति करने वाले दलों को ताकत दे दी। राजीव गांधी भले ही राम मंदिर का ताला खुलवाने का श्रेय ले रहे थे, लेकिन हिंदुओं के भीतर पनप रहे असंतोष को भांपने में भी वे कामयाब हुए थे। भाजपा और हिंदुत्ववादी पार्टियां इस मुद्दे को लेकर लगातार हवा दे रही थी। हालांकि, कांग्रेस कभी भी खुलकर इस मुद्दे के साथ खड़ी नहीं हो सकती थी। ऐसे में भाजपा और उसकी सहयोगियों को बैठे- बिठाए एक मुद्दा मिल गया। राम मंदिर पर दावा पुख्ता होता गया।
शाहबानो प्रकरण और सलमान रुश्दी की किताब पर प्रतिबंध लगाने के राजीव सरकार के निर्णय का नई पीढ़ी और वाम विचारधारा को मानने वालों ने खूब विरोध किया। सरकार के इन निर्णयों ने हिंदू और मुसलमानों के बीच की खाई को बढ़ा दिया। हिंदू वर्ग ने मुसलमानों को लेकर एक अलग ही भावना पालनी शुरू कर दी। ऐसे में तुष्टीकरण और वोट बैंक पॉलिटिक्स की समझ लोगों में विकसित होने लगी। राजीव सरकार के फैसलों के बाद पहली बार हिंदुओं ने स्वतंत्र देश के नागरिक की जगह हिंदुओं के तौर पर सोचना शुरू किया।
राजीव ने बदली राजनीति
वर्ष 1989 का चुनाव तब तक आ चुका था। राजीव सरकार पर घोटाले के आरोप लग रहे थे। 400 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने वाली राजीव सरकार चुनावी साल में डगमगाती नजर आ रही थी। ऐसे में राजीव गांधी ने राम मंदिर का मुद्दा गरमा दिया। आरएसएस- विश्व हिंदू परिषद के राम मंदिर आंदोलन को कमजोर करने के लिए राजीव गांधी फैजाबाद गए। रामराज्य लाने का दावा करते हुए लोकसभा चुनाव की मुहिम का आगाज किया। राम मंदिर का नींव रखवाने और भूमि पूजन में मुख्य भूमिका निभाई। हालांकि, कांग्रेस का हिंदुत्व अस्थायी रहा। तत्कालीन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजीव गांधी और कांग्रेस अपनी लाइन साफ नहीं कर पा रहे थे।
राजीव गांधी ने हिंदुत्व की लाइन पकड़ी, लेकिन फिर इसे छोड़ दिया। फायदा भाजपा ने उठाया। अयोध्या पर पैनी नजर रखने वाले लखनऊ के सीनियर जर्नलिस्ट वीरेंदर नाथ भट्ट कहते हैं कि देश में आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में पूजा जाता है। परंपरा है कि इस रात लोग अपने घरों की छत पर खीर बनाकर रखते हैं। अगली सुबह इसे खाई जाती है। कांग्रेस ने वह खीर तो बनाई, लेकिन इस खीर को भाजपा पूरी चट कर गई। असर यह हुआ कि कांग्रेस ने 1989 के चुनाव में सत्ता गंवा दी।
1989 के चुनाव का रिजल्ट चौंकाने वाला
1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्व में रिकॉर्ड 404 सीटों पर जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर रही तेलुगु देशम पार्टी को 30, माकपा को 22 सीटों पर जीत मिली। पहली बार चुनावी मैदान में उतरी भाजपा को 2 और भारतीय लोक दल को तीन सीटों पर जीत मिली। इंडियन कांग्रेस सोशलिस्ट भी चार सीटें जीतने में कामयाब रही। इंडियन कांग्रेस (जे) को एक और केरल कांग्रेस जोसेफ को दो सीटें मिली। अन्य नए दलों को कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
1989 का बिल्कुल इससे उलट रहा। कांग्रेस इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी। राजीव गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने 39.53 फीसदी वोट शेयर हासिल करते हुए 197 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, जनता पार्टी के खाते में 143 सीटें आई। पार्टी को 17.79 फीसदी वोट शेयर मिला। वहीं, दूसरे लोकसभा चुनाव में उतरी भारतीय जनता पार्टी को राम मंदिर मुद्दे का लाभ मिला। पार्टी ने 11.36 फीसदी वोट शेयर के साथ 85 सीटों पर कब्जा जमाया। माकपा 33 सीटें जीत सकी।
मंडल- कमंडल के बीच कांग्रेस अव्वल
अक्टूबर- नवंबर 1990 में अयोध्या में जिस प्रकार से कारसेवकों पर गोलियां चली। लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया, उसने देश में अलग ही माहौल बना दिया। देश में मंडल कमीशन के बाद की राजनीति के बाद बदले सामाजिक समीकरणों से उपजे नेता राज्यों की गद्दी संभाल चुके थे। लेकिन, वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर भी देश को स्थायी नेतृत्व नहीं दे पाए। इसी बीच 1991 में सरकार अस्थिर होने के बाद चुनाव का ऐलान हो गया। तमिलनाडु के एक कार्यक्रम के दौरान राजीव गांधी की जनसभा में बम विस्फोट के बाद हत्या हो गई। कांग्रेस को सहानुभूति की लहर का साथ मिला। मंडल कमजोर हुआ। कांग्रेस ने 36.26 फीसदी वोट शेयर के साथ 232 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि, कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से 30 सीट कम रह गई थी।
हालांकि, पार्टी ने पर्याप्त बहुमत जुटाया और पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार का गठन हुआ। इस चुनाव में कमंडल का जोर दिखा। तीसरे लोकसभा चुनाव में भाजपा 20.11 फीसदी वोट शेयर के साथ देश की 120 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हो गई। आठ साल से भी कम समय में पार्टी 2 से 120 तक जा चुकी थी। जनता दल 59 और माकपा 35 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही।
यूपी में तो मुद्दा केवल जय श्रीराम
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के रामभक्त कारसेवकों के गोलीकांड के साथ चुनावी मैदान में उतरी। 1989 में बनी मुलायम सिंह सरकार का पतन होने के बाद 1991 के चुनाव का मुद्दा राम ही रहे। 425 में से यूपी की 419 सीटों पर चुनाव हुआ। भाजपा ने 415 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 221 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। इस चुनाव में भाजपा को 164 सीटों का लाभ हुआ और वोट प्रतिशत में 19.84 फीसदी का इजाफा देखने को मिला। चुनाव में मुलायम के नेतृत्व में उतरी जनता दल को 92 सीटें मिली। कांग्रेस 46, जनता पार्टी 34, बहुजन समाज पार्टी 12 सीटें जीतने में कामयाब रही। इसी चुनाव ने बाबरी मस्जिद कारसेवा का भविष्य तय कर दिया।