एक ओर जहाँ लोकसभा 2024 चुनाव के लिए तैयारी जोरों पर है, वहीँ बिहार में सियासी हलचल उफान पर है। कुछ महीनों में देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन बिहार में प्रदेश के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के एक बार फिर से पाला बदलने की चर्चाएं तेज़ हो गयी हैं।
बिहार सीएम के द्वारा पिछले कुछ दिनों में जिस तरह के कदम उठाए गए हैं और जिस तरह की बयानबाजी उनकी और से आई हैं, इससे इस बात की ओर इशारा मिल रहा है कि बिहार में जल्द ही बड़ा ‘खेल’ होने वाला है। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर उन्होंने जननायक को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें दिए जाने वाले ‘भारत रत्न’ की घोषणा के बाद पीएम मोदी को धन्यवाद देते हुए नीतीश ने वंशवादी राजनीति पर निशाना साधा था। इधर नीतीश कुमार कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा 2′ या न्याय यात्रा’ में भी शामिल नहीं हो रहे हैं। देखा जाये तो नीतीश महागठबंधन के साथ-साथ विपक्ष के इंडी गठबंधन का भी हिस्सा हैं और इस वक़्त तो इंडी गठबंधन में भी फूट की खबरें आ रही हैं। नीतीश के साथ साथ अब गठबंधन के सभी प्रमुख दलों ने न्याय यात्रा से दरकिनार होने का फैसला कर लिया है।
इधर जदयू के एनडीए में जाने की चर्चाएं काफी तेज़ हो चुकी हैं। हालांकि, ये पहली बार नहीं होगा, जब नीतीश कुमार किसी गठबंधन को तोड़कर दूसरे दल से हाथ मिला रहे हैं। वह इससे पहले भी एनडीए, महागठबंधन,इंडी गठबंधन और लेफ्ट पार्टियों के साथ हाथ मिला चुके हैं। वह पहले भी बीजेपी के साथ सरकार बना चुके हैं।
नीतीश कुमार ने कब-कब बदला है पाला और किस बात को लेकर वे महागठबंधन को दिखाना चाहते हैं इस बार पीठ,आइये डालते हैं एक नज़र-
कब कब मारी पलटी
- 1974 में छात्र राजनीति के जरिए पॉलिटिक्स में एंट्री मारने वाले नीतीश कुमार अब तक पांच बार पाला बदल चुके हैं।
- जनता दल का हिस्सा रहे नीतीश कुमार ने पहली बार 1994 में पाला बदला। समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस, ललन सिंह के साथ मिलकर 1994 में नीतीश ने समता पार्टी बनाई थी।
- 1995 के विधानसभा चुनाव के लिए समता पार्टी ने वामदलों के साथ गठबंधन किया। मगर जब सफलता हाथ नहीं लगी तो उन्होंने वामदलों का हाथ छोड़ा और एनडीए में शामिल हो गए।
- 1996 में नीतीश कुमार ने दूसरी बार पलटी मारते हुए एनडीए का दामन थामा। बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के साथ नीतीश का सफर 2013 तक चला।
- एनडीए में पीएम बनाने की चाहत लिए हुए 2014 में नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा। उनके खाते में दो सीटें आईं, जिसके बाद उन्होने सीएम पद छोड़ दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था।
- 2015 में तीसरी बार पलटी मारते हुए उन्होंने महागठबंधन बनाया और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह उन्होंने एक बार फिर सीएम पद की शपथ ली।
- महागठबंधन के साथ उन्होंने 2017 तक सरकार चलाई। इस दौरान वह सीएम पद पर काबिज भी रहे। फिर जब तेजस्वी यादव का नाम ‘लैंड फॉर जॉब’ घोटाले में आया तो नीतीश ने चौथी बार पलटी मारते हुए एनडीए की शरण ली। .
- 2020 विधानसभा चुनाव में जब एनडीए में रहते हुए उनकी पार्टी जेडीयू को 43 सीटें मिली तो इस जनसमर्थन को देखते हुए वे स्वयं को लेकर अतिविश्वस्त हो गए। नतीजतन 2022 में पांचवीं बार पलटी मारते हुए उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़ा और फिर से महागठबंधन में शामिल हो गए।
इस बार क्यों छोड़ रहे महागठबंधन का साथ
अब ये देखने वाली बात है कि 2022 में महागठबंधन में आने वाले नीतीश का एक-डेढ़ साल के भीतर ही क्यों इससे मोहभंग हो गया है। आखिर नीतीश कुमार का छठी बार पाला बदलने की क्या है वजह-
इंडी गठबंधन ने सीट शेयरिंग में हो रही देरी: बिहार की 40 सीटों में से जदयू के लिए नीतीश 14-16 सीटें चाहते हैं। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस को 6 सीटें मिलेंगी, जो उसे कतई मंजूर नहीं है। सीट की अपेक्षाओं को लेकर राजद अलग ही स्टैंड पर है। अब ऐसे में इस बात पर गठबंधन में कोई भी सहमति नहीं बन पा रही है। नीतीश का ये भी मानना है कि चंद महीनों में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में इंडी गठबंधन को हर राज्य में सीट बंटवारा जल्द से जल्द करना चाहिए। नीतीश कई बार कांग्रेस पर इस बात को लेकर भी बिफर चुके हैं कि कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सजग नहीं है बल्कि अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों पर ही उसका मुख्य ध्यान है।
इंडी गठबंधन में कोई भविष्य नहीं: अगर इंडी गठबंधन को लोकसभा चुनाव में जीत मिलती भी है और उन्हें केंद्रीय नेतृत्व में जगह भी दी जाती है, तो भी वह सीएम पद छोड़कर उसे नहीं लेंगे। नीतीश ये भी जानते हैं कि इंडी गठबंधन में शीर्ष के सभी नेतागण पीएम की चाहत लिए लोकसभा चुनाव की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं और ऐसे में पीएम का पद मिलना काफी दूभर हो सकता है। जाहिर है, उन्हें इंडिया में अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा है।
इंडी संयोजक नहीं बनने से नाराज: इंडी गठबंधन के सूत्रधार रहे नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि उन्हें गठबंधन का संयोजक बनाया जाएगा। मगर टीएमसी की प्रमुख ममता बनर्जी सहित कांग्रेस,आरजेडी और वामदल के नेताओं का इस चीज़ को लेकर स्टैंड कुछ अलग ही दिखा, जिससे उनके नाराज होने की भी खबरें भी आईं।
छवि को सुधारने का मौका:हम देख चुके हैं कि महागठबंधन में जाते ही नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचारियों के साथ जाने का आरोप लगाकर बीजेपी लगातार हमलावर रही है। सृजन घोटाला जैसे काण्ड में उनका पहले ही नाम आ चुका है। इधर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से लेकर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव तक पर कई घोटालों का केस चल रहा है। ऐसे में नीतीश चुनाव से पहले अपनी छवि सुधारने के लिए भी ऐसा कदम उठाने की सोच रहे हैं।
हरा नहीं सकते तो दोस्त ही बना लिया जाए : देश में बीजेपी की हवा लगातार बनी हुई है। इसके ऊपर अब राम मंदिर का बनना। कई राजनीतिक विश्लेषक इस बात को लेकर एनडीए की जीत को लगभग सुनिश्चित मान रहे हैं। ऐसे में इंडी गठबंधन की जीत मुश्किल है। नीतीश अब यही मानकर चल रहे हैं कि अगर बीजेपी को हराया नहीं जा सकता है तो उसके साथ जाना ही बेहतर होगा।