बिहार में एनडीए की सरकार तो बन गई लेकिन विधानसभा में फ्लोर टेस्ट अभी बाकी है। नीतीश कुमार के नौवीं बार मुख्यमंत्री बनने पर राजद के नेता खास खुश नहीं है। यही कारण है कि सरकार बनने और शपथग्रहण के बाद भी राजद के नेताओं को खेला होने की उम्मीद है। वैसे राजद भले ही खेला होने की उम्मीद पाले रहे, सहयोगी कांग्रेस की नींद अलग उड़ी हुई है। कांग्रेस अपना कुनबा बचाने और बचाए रखने की कोशिश में जुट गई है।
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कांग्रेस के बिहार में 19 विधायक हैं। विधानसभा में ताकत के अनुसार राजद, भाजपा और जदयू के कांग्रेस चौथी नंबर की पार्टी है। लेकिन कांग्रेस के पास उतनी ताकत जरुर है कि वो राजद को सरकार बनाने के करीब ले जा सकती। लेकिन फिलहाल कांग्रेस की परेशानी यह है कि फ्लोर टेस्ट के पहले उसके साथ खेला न हो जाए।
इसलिए कांग्रेस ने अपने 16 विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से हैदराबाद भेज दिया है। ये विधायक शनिवार को पार्टी की बैठक में शामिल होने दिल्ली पहुंचे थे, यहीं से वे हैदराबाद रवाना हुए। दिल्ली से इन विधायकों को पटना लौट आना था। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने इन्हें हैदराबाद भेजने के लिए मना लिया। अब कांग्रेस विधायकों को बिहार विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने पर बुलाया जाएगा, जो 12 फरवरी से होना है।
कांग्रेस को डर है कि उसके विधायक या विधान पार्षद टूट सकते हैं। हालांकि बिहार कांग्रेस के नेता अभी टूट की संभावना से इनकार कर रहे हैं। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि कांग्रेस को सबसे अधिक डर है। यह डर क्यों है, इसका जवाब इतिहास में छुपा है।
दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस को छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई है। लेकिन कांग्रेस इस बार यह चाहती है कि जो मार्च 2018 में हुआ, वो कम से कम 2024 में न हो। दरअसल, जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन से नाता तोड़ा था। उसके कुछ दिन बाद कांग्रेस के चार विधान पार्षदों ने जदयू में शामिल होने का ऐलान कर दिया था। इसमें कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी भी शामिल थे, जो आज जदयू के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं।
1 मार्च 2018 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 67वें जन्मदिन के मौके पर कांग्रेस के चार नेता जदयू में शामिल हो गए। तब ये चारों पूर्व नेता सीएम नीतीश के आवास पहुंचे थे। वहां उन्होंने नीतीश कुमार को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के साथ-साथ जदयू का दामन भी थाम लिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही चारों कांग्रेसी नेताओं को जेडीयू की प्राथमिक सदस्यता प्रदान की। इनमें कांग्रेस के चार विधान पार्षद अशोक चौधरी, दिलीप चौधरी, तनवीर अख्तर और रामचंद्र भारती शामिल थे।
कांग्रेस को यही डर इस बार भी सता रहा है। दरअसल, कांग्रेस के पास बिहार विधान परिषद में 4 और बिहार विधानसभा में 19 सदस्य हैं। चर्चा है कि कांग्रेस के नेताओं की नैतिकता उन्हें धोखा दे सकती है। कांग्रेस ऐसी आशंकाओं से अब तक तो इनकार कर रही है। लेकिन विधायकों को हैदराबाद भेजने की स्थिति से कांग्रेस की आशंका खुलकर सामने आ गई है।