[Team insider] पतला दुबला कद काठी, नाक पर गोल चश्मा, एक चादर से आधा-अधूरा ढका तन, हाथ में लाठी यही बापू यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, मोहन दास करमचंद गांधी की पहचान सी है। उस दौर में राष्ट्रीय भावना से लबरेज एक से एक काबिल लोग थे मगर बापू ने ही देश के लोगों की नब्ज पकड़ी और महात्मा गांधी बने। हर किसी के छोटे से दर्द में शामिल होना उनकी फितरत थी। हजारीबाग के ही स्वतंत्रता सेनानी रामनारायण सिंह की पत्नी का निधन हो गया था। बापू ने पत्र लिखा ”आपकी धर्मपत्नी के स्वर्गवास की खबर सुनकर दु:ख हुआ। उनकी आत्मा को ईश्वर शांति दे…”। छोटी सी बात थी मगर हर किसी की पीड़ा से जुड़ने के भावना ने हर किसी को उनका दीवाना बना दिया था।
मनु को लोगों ने महात्मा और राष्ट्रपिता बना दिया
एक छोटी सी रियासत के दीवान के घर पोरबंदर में जन्मे मनु, मोनिया के बारे में लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी यह राष्ट्रपिता बनेगा। कुछ तो बात थी कि मनु को लोगों ने महात्मा और राष्ट्रपिता बना दिया। बिहार के चंपारण में नीलहे गोरों के खिलाफ इनके आंदोलन ने इन्हें देशव्यापी पहचान दिलाई। गौर करने की बात यह है कि उस जिस समय गांधी जी का जन्म हुआ था उसी साल बिहार बंधु में पहले पन्ने पर आंग्रेजों के दमन और नील किसानों के आक्रोश की खबर पहले पन्ने पर छपी थी। मगर उस उसके कई दशक के बाद गांधी जी 1917 में चंपारण पहुंचे और उस आक्रोश की उर्वर भूमि पर आंदोलन की फसल उपजाई, लोगों को न्याय दिलाया।
झारखंड तो दो दशक पूर्व बिहार से अलग हुआ। मगर झारखंड के हिस्से से बापू का गहरा लगाव रहा। 1917 से कांग्रेस के रामगढ़ सम्मेलन यानी 1940 के बीच वे एक दर्जनबार झारखंड आये। इस दरम्यान करीब पचास दिन उन्होंने यहां गुजारे।
रांची में तय होती रही रणनीति, गेट से मुलाकात
दक्षिण अफ्रिका से वापस लौटने के बाद नीलहे गोरों के खिलाफ यानी चंपारण आंदोलन को पहले पहले गांधी ने अपने हाथों में लिया और मुकाम तक पहुंचाया। खुद महत्मा गांधी जी ने स्वीकार किया है कि चंपारन आंदोलन की सफलता के कारण ही वे भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने में कामयाब हुए। और मोहनदास से महात्मा का सफर भी यहीं से शुरू हुआ। महत्वपूर्ण यह कि इस चंपारण आंदोलन की पृष्ठभूमि रांची में तैयार होती रही। बात 1917 के जून माह की है। पटना से चलकर तीन जून को रांची पहुंचे। उनके साथ बेटा और बा भी थे।
चंपारण आंदोलन को लेकर रांची से ही बनी थी रणनीति
चार जून को रांची के आड्रे हाउस में बिहार-ओडिशा के लेफ्टिनेंट गर्वनर सर एडवर्ट गेट से तय कार्यक्रम के अनुसार उनकी मुलाकात हुई। विमर्श का सिलसिला दो दिनों तक चला। दरअसल चंपारण आंदोलन को लेकर रांची से ही रणनीति बन रही थी। चंपारण समिति की 24 सितंबर को रांची में हुई बैठक में भी वे शामिल हुए। यह बैठक काफी लंबी चली चार दिनों तक आंदोलन को लेकर काफी विमर्श हुआ। उसके बाद भी वे रांची में टिके रहे और पांच अक्टूबर को रांची से पटना रवाना हुए। दरअसल गांधी से गेट की मुलाकात चंपारण आंदोलन के सिलसिले में ही थी। बाद में गेट ने एक कमीशन बना दिया और गांधीजी को इसका मेंबर बनाने के लिए राजी कर लिया। इसके बाद कमीशन का काम बेतिया से शुरू हुआ। एक तरह से चंपारण आंदोलन की नीति, रणनीति और जांच समिति का रांची में ही गठन किया गया।
रांची में ठिकाना
बापू रांची में रहते तो यहां किसी हितैषी के यहां श्रद्धानंद रोड में उनका पड़ाव रहता। गांधी के रांची आने से पहले से ही यहां के टाना भगत 1914 से ही अंग्रेजों के लगान वसूली के खिलाफ अहिंसक आंदोलन चला रहे थे। गांधी जी को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने टाना भगतों से मुलाकात की। मुलाकात के साथ ही टाना भगत पूरी तरह गांधी के अनुयायी हो गये। जुलाई 1917, आठ जुलाई को अपनी डायरी में बापू ने इसका जिक्र किया है। लिखा कि आज मैंने टाना भगत नामक आदिवासी जमात के लोगों से बात की। ये अहिंसा और सदाचार को मानने वाले हैं। खादी को अपना लिया। ये आज भी खद्दर ही पहनते हैं।
गांधी की दूसरी यात्रा, जिलों का दौरा
चंपारण आंदोलन में सफलता के बाद भी बापू का झारखंड से रिश्ता बना रहा। दूसरी बार कोई सात-आठ साल बाद 1925 में बापू फिर आये। 13 से 18 सितंबर तक झारखंड की यात्रा चार पहिया वाहन से की। इस दौरान वे पुरुलिया, चाईबासा, चक्रधरपुर, खूंटी, मांडर, हजारीबाग घूमते हुए रांची पहुंचे। इन स्थानों पर आयोजित अनेकों बैठकों को संबोधित किया और आजादी की अलख जगाई। हर सभा में चरखा का महत्व जरूर बताते। स्वावलंबन का पाठ पढ़ाते। कहते, दूसरों पर निर्भरता ही गुलामी है। इसलिए, अपना सूत कातिए और कपड़ा बुनें।
झारखंड के सौंदर्य से प्रभावित हुए
रांची से लौटने के बाद ‘यंग इंडिया’ के आठ अक्टूबर 1925 के अंक में बापू ने ‘छोटानागपुर में’ शीर्षक से संस्मरण लिखा। बापू लिखते हैं, छोटानागपुर की अपनी पूरी यात्रा मैंने मोटरकार से की। सभी रास्ते बहुत ही बढिय़ा थे और प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत दिव्य तथा मनोहारी था। चाईबासा से हम चक्रधरपुर गए फिर बीच में खूंटी और एक-दो अन्य स्थानों पर रुकते हुए रांची पहुंचे। हमारे रांची पहुंचने के वक्त ठीक शाम के सात बजे महिलाओं ने एक बैठक का आयोजन रखा था। बैठक में शामिल लोगों में बंगाली बहुसंख्यक थे। उसमें खादी पर अधिकारियों से विमर्श और योगदा सत्संग आश्रम का भी उल्लेख किया।
रामगढ़ रही अंतिम यात्रा
रामगढ़ में कांग्रेस के 1940 में हुए अधिवेशन में भी हिस्सा लेने बापू आये थे। यह उनकी झारखंड की अंतिम यात्रा थी। रांची से रामगढ़ फोर्ड कार से गये थे। यह कार रांची के स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी नारायण जायसवाल की थी। लक्ष्मी बाबू खुद ड्राइव कर ले गए थे। रांची और रामगढ़ इसी गाड़ी से आना जाना होता था। इस रांची यात्रा में बापू लालपुर के बिरला कोठी में टिके थे जहां आज बीआइटी एक्सटेंशन चलता है। गांधीजी 1940 में एक मार्च से 20 मार्च तक रहे। हालांकि वे 12 मार्च की शाम ईसाई मिशनरियों से बातचीत करने के लिए रामगढ़ से चले आए। 14 मार्च को रामगढ़़ में खादी ग्रामोद्योग प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। 19 मार्च की सुबह ठक्कर भवन एवं हरिजनों एवं आदिवासियों के लिए भवन का उद़घाटन करने के बाद रामगढ़ चले गए। रामगढ़़ कांग्रेस ऐतिहासिक रहा।
गांधी के पीछे राजकुमार शुक्ल
नील किसानों की पीड़ा से आहत चंपारण के पंडित राजकुमार शुक्ल ने बापू को मना लिया कि वे अपनी आंखों से चंपारन को देखें। वे गये अन्य मित्रों के सहयोग से किसानों की परेशानियां लिपिबद्ध होने लगीं। बापू आंदोलन में शामिल हुए तो अंग्रेजों ने उनपर नजर रखनी शुरू की। गांधीजी ने वहां के किसानों में निडरता भरी। मजिस्ट्रेट ने एक लंबी रिपोर्ट गवर्नमेंट को लिखी, जिसका आशय यह था कि रैयतों में इतनी खलबली हो गई कि अब वे नीलहों को ही नहीं, बल्कि सरकारी अफसरों को भी कुछ नहीं समझते।
अंग्रेज गांधीजी को चंपारन से हटाने पर कर रही थी विचार
करीब दस हजार से अधिक रैयतों का बयान लिया जा चुका था। इसकी खबर अंग्रेज सरकार को थी। इस बीच गवर्नमेंट का एक पत्रा आया कि जांच पूरी हो गई होगी, इसलिए रेवन्यु बोर्ड के मेंबर को गवर्नमेंट रांची से पटना भेज रही है। गांधीजी उनसे मिलें और बातें करें और अपनी जांच का नतीजा बतावें। सरकार अब गांधीजी को चंपारन से हटाने पर विचार कर रही थी। इसलिए रांची में रह रहे लेफ्टिनेंट गर्वनर सर एडवर्ट गेट चाहते हैं कि गांधीजी उनसे मिल लें। पत्र पाकर गांधीजी रांची में चंपारन के किसानों की समस्याओं को लेकर आड्रे हाउस में लेफ्टिनेंट गर्वनर से मिले।