भोजपुरी के मशहूर गायक व अभिनेता पवन सिंह का राजनीतिक कॅरियर शुरू होने से पहले खत्म होता दिख रहा है। पवन सिंह राजनीतिक कार्यकर्ता तो नहीं रहे लेकिन भाजपा ने उस चुनाव में उतारने का निर्णय लिया है, जिसमें उसका नारा 400 पार का है। यानि भाजपा ने एनडीए के लिए 400 सीटों से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। भाजपा ने 195 सीटों पर एक सथ उम्मीदवारों की घोषणा की। इसमें एक नाम पवन सिंह का भी था। उन्हें पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से उम्मीदवार बनाया गया था। पवन सिंह के उम्मीदवारी की घोषणा 2 मार्च की शाम में हुई। इसके साथ ही पवन सिंह का राजनीतिक कॅरियर शुरू हुआ। लेकिन 24 घंटे से कम वक्त में ही पवन सिंह का राजनीतिक कॅरियर खत्म भी हो गया। चुनाव लड़ने में पवन सिंह ने खुद को असमर्थ बताया। इसके पीछे की कहानी दिलचस्प है, वही हम आपको बता रहे हैं।
नहीं लड़ेंगे पवन सिंह आसनसोल से चुनाव
दरअसल, पवन के हाव भाव उन्हें बिहार की आरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का इच्छुक काफी पहले से बताती रही हैं। आरा से आरके सिंह सांसद हैं, जो केंद्र में मंत्री भी हैं। जब भी आरके सिंह से आरा सीट पर बात हुई तो वे भड़कते हुए सिर्फ खुद को ही दावेदार बताया। पवन सिंह को भाजपा ने आरा से तो टिकट नहीं दिया, लेकिन उन्हें आसनसोल से उम्मीदवार बना दिया गया। इस सीट पर शत्रुघ्न सिन्हा सांसद हैं। लेकिन जब पवन सिंह ने चुनाव लड़ने में खुद को असमर्थ बताया तो यह समझा गया कि वे आरा से टिकट नहीं मिलने से नाराज हो गए हैं। जबकि ऐसा है नहीं। वे आसनसोल से टिकट मिलने से खुश भी थे और अंदरखाने में उनकी तैयारी हो भी चुकी थी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जब कुछ सेट था तो पवन सिंह ने टिकट क्यों छोड़ा।
सूत्र बता रहे हैं कि पवन सिंह के चुनाव से किनारा करने की वजह उनकी भोजपुरी इंडस्ट्री के वो नाम हैं, जो भाजपा में अपनी पैठ बना चुके हैं। बताया जा रहा है कि पवन सिंह को टिकट मिलते ही उनके कुछ पुराने शुभचिंतकों ने पवन के पुराने गानों और विवादास्पद जिंदगी के पन्नों को भाजपा नेतृत्व के सामने खोल कर रख दिया। Pawan Singh की निजी जिंदगी का इतिहास ऐसा है जो भाजपा के नेतृत्व को खासा पसंद नहीं आया। चर्चा है कि तभी पवन सिंह को कहा गया कि वे खुद चुनाव लड़ने से मना कर दें। इसके बाद पवन ने गौतम गंभीर और जयंत सिन्हा की तरह खुद ही आगे बढ़ कर चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया। हालांकि पवन सिंह ने आधिकारिक तौर खुद को बस चुनाव लड़ने में असमर्थ बताया है। कोई कारण नहीं बताया है। जबकि चर्चा है कि भोजपुरी वाले भाजपा नेताओं ने उनका टिकट काटा है। इस बात की सच्चाई जो भी हो लेकिन पवन का राजनीतिक कॅरियर एक झोंके की तरह आया और फिर माहौल बनने से पहले गायब हो गया।