पटना हाई कोर्ट ने शादीशुदा मर्दों के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस फैसले के बाद दहेज़ के झूठे आरोप और केस झेल रहे पुरुषों को राहत मिलेगी। पटना हाई ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण के लिए अपने ससुराल यानी पत्नी के पैतृक घर से धन की मांग करता है, तो ऐसी मांग दहेज निषेध अधिनियम-1961 के अनुसार दहेज की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है।
पटना हाई कोर्ट के न्यायाधीश बिबेक चौधरी की एकलपीठ ने नरेश पंडित द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकृति देते हुए यह निर्णय सुनाया। दरअसल, याचिकाकर्ता ने आइपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा-चार के तहत अपनी सजा को हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी।
क्या है पूरा मामला
याचिकाकर्ता का विवाह सृजन देवी के साथ 1994 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। इसके बाद, वे पति-पत्नी के रूप में साथ रहने लगे और इस दौरान उन्हें तीन बच्चे हुए- दो लड़के और एक लड़की। लड़की का जन्म वर्ष 2001 में हुआ था। पत्नी ने आरोप लगाया कि उनकी बेटी के जन्म के तीन साल बाद, याचिकाकर्ता और उसके रिश्तेदारों ने लड़की की देखभाल और भरण-पोषण के लिए उसके पिता से 10 हजार रुपये की मांग की। यह भी आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता और उसके पारिवारिक सदस्यों द्वारा मांग पूरी न होने पर पत्नी को प्रताड़ित किया गया।
हाईकोर्ट का फैसला
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता (पति) और अन्य आरोपी व्यक्तियों के विरुद्ध पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप सामान्य और सर्वव्यापी प्रकृति के हैं और इसलिए उनकी सजा का आदेश रद्द किया जाना चाहिए। मामले का अवलोकन कर न्यायालय ने पाया कि 10 हजार रुपये की मांग शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच विवाह के विचार के रूप में नहीं की गई थी, बल्कि लड़की के भरण-पोषण के लिए की गई थी और इसलिए आईपीसी की धारा 498ए के तहत यह ‘दहेज’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है। परिणामस्वरूप, हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के निर्णय और आदेश को रद कर दिया और पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया।