गंगा दशहरा का आयोजन उन क्षेत्रों में अलग महत्व रखता है, जहां से होकर गंगा नदी गुजरती है। पटना ऐसे ही स्थानों में से एक है, जिसके घाटों पर हर पूजा-पाठ में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंचती है। छठ जैसे त्योहार में तो प्रशासन अपनी व्यवस्था को चुस्त रखता है लेकिन कई बार दूसरे त्योहारों में चूक दर्दनाक यादें दे जाती है। यही हाल रहा गंगा दशहरा के दिन। रविवार, 16 जून को गंगा दशहरा के मौके पर पटना के अलग अलग घाटों पर श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए पहुंचे। इनमें कई लोग नदी पार कर दूसरे किनारों पर स्नान करने गए। इसी में बाढ़ के उमानाथ घाट पर स्नान कर लौटती एक नाव डूब गई। इस नाव में लगभग डेढ़ दर्जन लोग सवार थे। नाव डूबी यह तो अलग बात है, लेकिन गंगा दशहरा के मौके पर प्रशासनिक व्यवस्था घाट पर नहीं थी, यह सबसे शर्मनाक सच है।
दरअसल, आम दिनों में घाटों पर लोगों का आना जाना कम होता है लेकिन गंगा दशहरा पर तो हर घाट पर भी हजारों में होती है। उमानाथ घाट पर यही स्थिति रही। लेकिन प्रशासन की ओर से न कोई एडवाइजरी थी और न ही भीड़ के प्रबंधन की कोई व्यवस्था। घाटों पर ऐसे कार्यक्रमों के दौरान एसडीआरएफ की टीम भी रखी जाती है लेकिन उमानाथ घाट पर गंगा दशहरा को लेकर स्थानीय प्रशासन बिलकुल बेपरवाह रहा। रविवार को सुबह जब नाव डूब तो हाय-तौबा मची। इसमें 11 लोग तो जैसे तैसे खुद तैरते हुए निकल गए। थोड़ी देर बाद दो और लोगों को बचा लिया गया। लेकिन सरकारी राहत व बचाव कार्य दो घंटे से अधिक देरी के बाद शुरू हुआ।
यही कारण है कि चार लोग लापता हैं। जिसमें एनएचएआई के सेवानिवृत्त अधिकारी अवधेश प्रसाद और उनका भांजा भी शामिल है। इस नाव पर सवार लोगों में अवधेश प्रसाद की पत्नी भी शामिल थीं, जो नाव डूबने के बाद बच गई। लेकिन एक माह पहले ही रिटायर हुए अवधेश प्रसाद की तलाश अभी तक पूरी नहीं हुई है। बताया जा रहा है कि यहां गंगा में मुड़ाव आता है, जिसके कारण इस घाट पर लहर तेज होती है। इसके बावजूद गंगा दशहरा जैसे महत्वपूर्ण मौके पर प्रशासनिक लापरवाही से सवाल उठ रहे हैं।
आपको बता दें कि पटना के गंगा घाटों पर आने जाने के दौरान नाव हादसे होते ही रहे हैं। कई ओवरलोड की समस्या बताई जाती है तो कभी खराब नावों की। जब भी दुर्घटना होती है तो प्रशासनिक चहलपहल दिखती है लेकिन उसके बाद फिर सब सन्नाटा हो जाता है। 14 जनवरी 2017 को संक्रांति मेले के दौरान पटना में एक बड़ा हादसा हुआ था जिसमें तीन दर्जन से अधिक लोगों की नदी में डूबने से मौत हो गई थी। उस दिन भी बचाव दलों की कमी सबसे बड़ा मुद्दा रही लेकिन इस घटना के बाद भी छठ पूजा को छोड़ कर गंगा घाटों पर अन्य त्योहारों के दिन प्रशासनिक व्यवस्था खास नहीं दिखती।