बिहार में आरक्षण पर पटना हाईकोर्ट (Patna Highcourt) के फैसले के बाद राज्य सरकार ने बड़ा एलान किया है। राज्य सरकार ने कहा है कि वह हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेगी और सुप्रीम कोर्ट से न्याय मांगेगी। उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने आज मीडिया से बात करते हुए कहा कि पटना हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन किया जा रहा है। राज्य सरकार कानूनविदों के संपर्क में है। सरकार जल्द ही इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेगी।
सम्राट चौधरी ने कहा कि हम लोग सुप्रीमकोर्ट जाएंगे और सुप्रीम कोर्ट से न्याय मांगेंगे। उन्होंने कहा कि जातीय गणना करा कर बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाया गया था। उन्होंने कहा कि वैसे भी बिहार में सभी वर्गों को आरक्षण है। एससी, एसटी, अति पिछड़ों, पिछड़ों के साथ साथ गरीब सवर्णों को भी आरक्षण दिया गया है। डिप्टी सीएम ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलेगा।
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बता दें कि पटना हाई कोर्ट ने 20 जून को अपने एक अहम फैसले में बिहार में पिछड़े, अति पिछड़े, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा को 50 परसेंट से बढ़ा कर 65 परसेंट करने के सरकारी फैसले को रद्द कर दिया है। पटना हाईकोर्ट ने बिहार आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को रद्द कर दिया है।
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दरअसल, नीतीश सरकार ने 21 नवंबर 2023 को जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एससी, एसटी, अति पिछड़ों औऱ पिछड़ों के लिए आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने की सरकारी अधिसूचना जारी की थी। बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना कराया था, जिसके अनुसार राज्य की कुल आबादी में ओबीसी और ईबीसी की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है, जबकि एससी और एसटी की कुल आबादी 21 प्रतिशत से अधिक है। सरकार ने ईडब्ल्यूएस के लिए 10 परसेंट का कोटा रखा था, जिससे बिहार में आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत हो गई थी। कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया।