रांची: रामदास सोरेन को मंत्री बनाना झामुमो पर शायद भारी पड़ रहा है। पार्टी के अंदर इस बात को लेकर सुगबुगाहट दिख रही है। राजनीतिक पंडितों की माने तो चंपई सोरेन के विद्रोह के बाद आनन फानन कोल्हान से ही रामदास सोरेन को मंत्री झामुमो की भूल साबित हो रही है। इसे लेकर दावा किया जा रहा है कि यदि मंत्रिमंडल विस्तार को टाल दिया जाता तो विधायकों के अंदर यह नाराजगी देखने को नहीं मिलती। खबर है कि रामदास सोरेन को चम्पई सोरेन के स्थान पर मंत्री बनाये जाना झामुमो के विधायक दशरथ गागराई को नागवार गुजरा है। बता दें दशरथ गागराई वहीं हैं जिन्होंने कोल्हान में दो-दो बार के विधायक और पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा को शिकस्त दी थी।
दशरथ गागराई अपने आप को रामदास सोरेन की तुलना में कहीं बड़ा चेहरा मानते हैं। वहीं झामुमों के ही संजीव सरदार जिन्हें पहले ही चम्पई का करीबी और बेहद खास माना जाता है वो भी झामुमों की बैठक से दूर रहे। बता दें चंपई सोरेन के सीएम रहते संजीव सरदार को इसका लाभ भी मिला, कई योजनाएं मिली। अब रामदास सोरेन पर दांव खेलना झामुमो पर भारी पड़ता दिख रहा है। भीतर की हलचल जो कहानी बयां कर रही उससे तो लग रहा कि झामुमों में कुछ तो पक रहा है। अभी तक इन विधायको की गैरमौजूदगी को लेकर झामुमों की ओर से कुठ भी नही कहा गया है। लेकिन भीतरी मोर्चे में जेएमएम अपने लोगों के नाराजगी का शिकार होती दिख रही है। वहीं इन कयासों में अगर सच्चाई है तो आने वाले 15 तारीख को पीएम मोदी के जमशेदपुर यात्रा के दौरान या उससे पूर्व ही एक बार पुन: कोल्हान की सियासत में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है। पॉलिटिकल पंडितों की माने तो यदि दशरथ गागराई और संजीव सरदार साथ छोड़ते हैं तो फिर कोल्हान की पूरी सियासत हिलती नजर आयेगी।