बिहार के सीवान, छपरा और गोपालगंज में जहरीली शराब से हुई मौतों पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक बार फिर नीतीश कुमार को घेरा है। उन्होंने आंकड़ा जारी कर कहा कि नीतीश कुमार ने ही शराब को बढ़ावा दिया है और अब शराबबंदी कर महात्मा बनने का ढोंग कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिख कर बताया है कि कैसे नीतीश कुमार के शासन में शराब की दुकानें बढ़ी है। उन्होंने दस साल का आंकड़ा जारी किया है।
तेजस्वी यादव ने लिखा कि बिहार के हर चौक-चौराहे पर शराब की दुकाने खुलवाने वाले तथा शराबबंदी के नाम पर जहरीली शराब से हजारों जाने लेने वाले मुख्यमंत्री अब महात्मा बनने का ढोंग कर रहे है। मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने अपने शुरू के 10 वर्षों में बिहार में शराब की खपत बढ़ाने के हर उपाय किए और अब अवैध शराब बिकवाने के हर उपाय कर रहे है। क्या मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार मेरे इन तथ्यों को झुठला सकते है?
- 2004-05 में बिहार के ग्रामीण इलाकों में 500 से भी कम शराब की दुकानें थीं, लेकिन 2014-15 में उनके शासन में यह बढ़कर 2,360 हो गई।
- 2004-05 में पूरे बिहार में लगभग 3000 शराब की दुकानें थीं जो 2014-15 में बढ़कर 6000 से अधिक हो गईं।
- 1947 से 2005 यानि 58 साल में बिहार में सिर्फ3000 दुकानें ही खुलीं लेकिन 2005 से लेकर 2015 तक नीतीश जी ने 10 साल में इसे दोगुना कर 6000 कर दिया। 58 साल में बिहार में हर साल औसतन 51 दुकानें खोली गईं, लेकिन 2005-10 के 10 साल नीतीश राज में हर साल औसतन 300 दुकानें खुलीं।
मुख्यमंत्री के ध्यानार्थ शराबबंदी के बाद के भी कुछ तथ्य सांझा कर रहा हूँ।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में शराबबंदी होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं। वर्तमान बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं। वहीं, इसकी तुलना में महाराष्ट्र, जहां शराबबंदी नहीं है, वहां शराब पीने वाले पुरुषों का प्रतिशत महज 13.9 है। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 14 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं, फिर भी नीतीश जी अनुसार बिहार में शराबबंदी लागू है, क्या मजाक है।
नीतीश जी की तथाकथित शराबबंदी के बाद भी स्थिति इतनी बदतर है कि एक आंकड़े के अनुसार बिहार में हर दिन औसत 400 से ज्यादा लोगों की शराब से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी होती है तथा बिहार पुलिस व मद्य निषेध विभाग की ओर से प्रदेश में हर दिन करीब 6600 छापेमारी होती है यानि औसत हर घंटे 175 छापेमारी होती है। इसका अर्थ है बिहार पुलिस और मद्य निषेध विभाग हर महीने लगभग 2 लाख तथा प्रतिवर्ष 24 लाख जगह छापेमारी करता है लेकिन इसके बाद भी अवैध शराब का काला काराबोर बदस्तूर जारी है।
इसका एक आशय यह भी है कि ज़ब्त शराब को बाद में जेडीयू नेताओं, शराब माफिया और पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से बाजारों में बेच दिया जाता है। शराबवंदी के बाद भी एक आंकड़े के अनुसार राज्य में लगभग 3 करोड़ 46 लाख लीटर से अधिक अवैध देशी और विदेशी शराब पकड़ी जा चुकी है। ये कौन लोग है और किसके अनुमति से शराबबंदी के बाबजूद भी अपना कारोबार चला रहे है?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार शराबबंदी के उल्लंघन के 8.43 लाख मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें कुल 12.7 लाख लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इन 12.7 लाख लोगों में 95% दलित और दूसरे वंचित जातियों के लोग थे, शराबबंदी के नाम पर सबसे ज्यादा शोषण इन्ही वंचित जातियों के साथ क्यों किया जा रहा है? शराबबंदी नीतीश कुमार के शासन का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। बिहार में शराब के नाम पर अवैध कारोबार के रूप में लगभग 30 हजार करोड़ की समानांतर अर्थव्यवस्था चलाया जा रहा है, जिसका सीधा फ़ायदा जेडीयू पार्टी और उसके नेताओं को मिल रहा है।