रांची: घुसपैठ के मुद्दे और जांच में गड़बड़ी को लेकर बाबूलाल मरांडी के अपने ट्वीटर हैंडल से कई संवेदनशील सवाल उठाए हैं। उन्होंने 2023 के रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि 2 जून, 2023 को राज्य सरकार के खुफिया विभाग ने सभी जिलों के उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर स्वीकार किया था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को संथाल परगना के कई मदरसों में पनाह दी जाती है। इन ठिकानों में उनके पहचान पत्र और अन्य दस्तावेज तैयार किए जाते हैं। खुफिया विभाग द्वारा संवेदनशील सूचना साझा किए जाने के बावजूद प्रशासन द्वारा घुसपैठियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। माननीय उच्च न्यायालय ने घुसपैठ को झारखंड के लिए बड़ा खतरा बताकर राज्य सरकार से रिपोर्ट भी तलब की। तब खुफिया विभाग द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठियों की पुख्ता सूचना दिए जाने के बावजूद संथाल परगना के सभी 6 जिलों के उपायुक्तों ने उच्च न्यायालय में झूठा शपथ पत्र दायर कर बताया कि उनके सम्बन्धित जिलों में एक भी घुसपैठिया नहीं है।
उच्च न्यायालय ने घुसपैठ की पड़ताल के लिए स्वतंत्र जांच समिति गठित करने का आदेश दिया तो उसके विरुद्ध भी राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। संथाल परगना के मतदान बूथों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि, अवैध रूप से बस चुके जमाई टोले, आदिवासियों की जमीनों पर चल रहा कब्जे का खेल चीख-चीखकर घुसपैठ की गवाही दे रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि उपायुक्तों ने किसके दबाव में झूठ बोला? किसके दबाव में माननीय उच्च न्यायलय को गुमराह किया गया? वास्तविकता यह है कि झामुमो-कांग्रेस के द्वारा आदिवासियों को मिटाने का प्रयास हर स्तर पर किया जा रहा है। हेमंत सरकार का पूरा सरकारी तंत्र आदिवासी समाज के विरुद्ध साजिश रचने और घुसपैठियों को पनाह देने की गतिविधियों में संलिप्त है। घुसपैठ से आदिवासी समाज के अस्तित्व पर गहरा संकट मँडरा रहा है। साथियों, हमें एकजुट होकर बांग्लादेशी घुसपैठियों को झारखंड से बाहर खदेड़ने और उनके सरपरस्ततों को बेनकाब करने की जरूरत है।