बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी को इस बार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। सुशील कुमार मोदी को यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया। कैंसर से पिछले वर्ष उनका निधन हुआ। सुशील कुमार मोदी बिहार की राजनीति में वो नाम हैं, जिनके पास सफलता कड़े संघर्ष के बाद आई। सुशील मोदी को बम और गोलियों के बीच से निकलने वाला नेता कहा जाता है। सुशील मोदी पर 1990 के दशक में हुए जानलेवा हमले ने उस दौर की राजनीति और अपराध के गहरे गठजोड़ को उजागर किया था। 1992-93 में पटना विश्वविद्यालय के पास रमना रोड पर सुशील मोदी पर अपराधियों ने बम और गोलियों से हमला किया था, जो उस समय आरजेडी सरकार और लालू यादव के खिलाफ मुखर विरोध की आवाज थे।
यह घटना उस समय की है जब रमना रोड पर एक व्यापारी की हत्या कर दी गई थी। व्यापारी के परिजनों से मिलने सुशील मोदी अपनी पीली वेस्पा 150 स्कूटर से वहां पहुंचे। उनके साथ उनके बॉडीगार्ड भी मौजूद थे, जो पीछे की सीट पर रिवॉल्वर लेकर बैठे थे। अपराधियों ने पहले बम फेंका और फिर गोलियों की बौछार कर दी। इस हमले में सुशील मोदी की जान बाल-बाल बची। हालांकि, बम के कुछ स्प्रिंटर उन्हें लगने से वे घायल हो गए थे। बावजूद इसके, मोदी ने अपनी राजनीतिक यात्रा और आरजेडी सरकार के खिलाफ अपने संघर्ष को जारी रखा।
यह सुशील मोदी पर हुआ पहला हमला नहीं था। उनके ऊपर कई बार जानलेवा हमले किए गए और उन्हें लाठी-डंडों से पीटा भी गया। लेकिन इन घटनाओं से वे कभी पीछे नहीं हटे। सुशील मोदी ने लालू यादव और RJD सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और जनता के बीच लोकप्रियता हासिल की। उस दौर में बिहार की राजनीति अपराध और हिंसा से भरी हुई थी। हत्या, फिरौती और अपराध का बोलबाला था। इस माहौल में सुशील मोदी जैसे नेता जनता के अधिकारों और सुशासन की लड़ाई लड़ रहे थे। रमना रोड की घटना इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक नेता ने अपने जीवन को जोखिम में डालकर भी राजनीतिक संघर्ष जारी रखा।
जेपी आंदोलन से उभरे सुशील कुमार मोदी ने अपने संघर्ष के दम पर बिहार की राजनीति में अलग पहचान बनाई। वे न केवल भाजपा के प्रमुख चेहरे बने, बल्कि अपनी निडरता और जनता के मुद्दों पर लड़ाई के लिए जाने गए। उनका जीवन उन चुनौतियों का प्रतीक है, जो उन्होंने अपने राजनीतिक सिद्धांतों की रक्षा और बिहार की जनता के लिए झेली।
सुशील कुमार मोदी का राजनीतिक जीवन
बिहार की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा और संघर्षशील नेता सुशील कुमार मोदी का जीवन राजनीति, सामाजिक कार्य, और संगठन निर्माण में उनके अविस्मरणीय योगदान का प्रमाण है। उनकी यात्रा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से शुरू हुई और उन्होंने पांच दशकों तक सक्रिय राजनीति में अपनी जगह बनाई। सुशील मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आजीवन सदस्य रहे और वहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। वे जेपी आंदोलन के दौरान एक छात्र नेता के रूप में उभरे। 1971 में वे पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के 5 सदस्यीय कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित हुए और 1973 से 1977 तक महासचिव के रूप में कार्य किया।
आपातकाल के दौरान सुशील मोदी ने 19 महीने जेल में बिताए, जो उनके संघर्षशील स्वभाव का प्रतीक है। इस दौरान उन्होंने राजनीति में अपनी गहरी पैठ बनाई और समाज के मुद्दों के लिए आवाज उठाई। 1983 से 1986 तक वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के प्रदेश मंत्री और संगठन मंत्री जैसे पदों पर कार्यरत रहे। इसके बाद 1990 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और पटना केंद्रीय विधानसभा से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। 1996 से 2004 तक वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे और अपने कड़े रुख के लिए जाने गए। 2004 में उन्होंने भागलपुर से लोकसभा चुनाव जीता।
2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार में सुशील मोदी को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाया गया। उन्होंने 2010 में फिर से इस पद को संभाला और नीतीश सरकार में लगभग 11 वर्षों तक इस पद पर रहे। 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद सुशील मोदी को राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुना गया।
सुशील मोदी अपनी स्पष्टवादिता, आरजेडी के खिलाफ मुखर रुख, और अपनी पार्टी के लिए कड़ी मेहनत करने वाले नेता के रूप में पहचाने जाते हैं। उनकी यात्रा न केवल उनके संघर्ष और सफलता की कहानी है, बल्कि बिहार की राजनीति के बदलावों का प्रतिबिंब भी है।