दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद इंडिया (INDI) गठबंधन की कमजोर कड़ियां खुलकर सामने आ गई हैं। चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, जिससे गठबंधन की एकता पर सवाल उठने लगे। अब गठबंधन के ही कई नेता कांग्रेस के इस रवैए पर सवाल उठा रहे हैं।
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इंडी गठबंधन में फूट, सहयोगी दलों ने कांग्रेस पर उठाए सवाल
दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का अलग-अलग चुनाव लड़ना विपक्षी एकता के दावे की पोल खोल रहा है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि “दिल्ली में कांग्रेस ने भाजपा की भाषा बोली है।” इसी तरह TMC के नेता कीर्ति आजाद ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि “इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस करे या नहीं, इस पर अब पुनर्विचार करने की जरूरत है।”
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JDU ने कांग्रेस के रवैए को ठहराया जिम्मेदार
इसी कड़ी में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि “नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन इसलिए छोड़ा क्योंकि उन्हें कांग्रेस का रवैया ठीक नहीं लगा।”
केसी त्यागी के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में जदयू के एनडीए में वापस लौटने के कारणों पर चर्चा तेज हो गई है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या जदयू ने एनडीए में वापसी नरेंद्र मोदी और भाजपा की नीतियों के प्रति मोहब्बत में की है, या फिर कांग्रेस के प्रति बढ़ती नाराजगी की वजह से?
“मोदी प्रेम” नहीं, “कांग्रेस की नफरत” से जदयू की वापसी!
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के फैसले हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। जब उन्होंने इंडी गठबंधन का साथ छोड़ा और दोबारा एनडीए (NDA) में वापसी की, तो इसे भाजपा से बढ़ती नजदीकियों के रूप में देखा गया। लेकिन केसी त्यागी के बयान के बाद यह साफ हो गया कि नीतीश कुमार की वापसी मोदी के प्रेम में नहीं, बल्कि कांग्रेस के व्यवहार से नाराज होकर हुई।
गठबंधन की राजनीति पर मंडराते सवाल
- दिल्ली चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन की एकता पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
क्या कांग्रेस अब भी विपक्ष को एकजुट करने में सक्षम है? - क्या आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच दरार और बढ़ेगी?
- क्या नीतीश कुमार का भाजपा के साथ जाना कांग्रेस की रणनीतिक विफलता थी?
राजनीति में कोई भी फैसला अंतिम नहीं होता। नीतीश कुमार ने जिस तरह से कांग्रेस से दूरी बनाकर एनडीए का दामन थामा, वह यह दर्शाता है कि विपक्षी एकता में अब कई मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। आने वाले लोकसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या विपक्ष इस फूट को भर पाएगा या फिर भाजपा इसका सीधा फायदा उठाएगी?