बिहार में बेगूसराय जिले के तेघड़ा मुंसिफ कोर्ट ने जिला प्रशासन की लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाते हुए DM के वेतन पर रोक लगाने का आदेश दिया है। यह कार्रवाई कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करने के कारण हुई है। मामला एक पुराने भूमि विवाद से जुड़ा हुआ है, जिसमें प्रशासन कोर्ट के निर्देश के बावजूद अब तक कार्रवाई करने में असफल रहा है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिला प्रशासन की निष्क्रियता और आदेशों की अवहेलना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। डीएम का वेतन अगले आदेश तक नहीं जारी होगा। इसके अलावा, कोषागार पदाधिकारी को सात दिनों के अंदर शपथ पत्र पर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाएगी।
जमीन विवाद के कारण बढ़ी परेशानी
मामला प्रो. श्यामदेव पंडित सिंह और दुलारू सिंह के बीच भूमि स्वामित्व को लेकर लंबे समय से चला आ रहा है। वर्ष 1999 में यह मुकदमा दायर हुआ था, जिसमें कोर्ट ने श्यामदेव सिंह के पक्ष में फैसला देते हुए प्रशासन को उनकी जमीन पर कब्जा दिलाने का निर्देश दिया था। उन्होंने इस प्रक्रिया के लिए 49,015 रुपये भी जमा किए, लेकिन 10 साल बाद भी प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
प्रशासन और पुलिस की निष्क्रियता उजागर
कोर्ट ने 27 सितंबर 2024 को प्रशासन और पुलिस से जवाब मांगा कि अब तक आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ। लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसके बाद, 25 जनवरी 2025 को बेगूसराय के एसपी भी कोर्ट में संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। यहां तक कि 2014 में पटना हाई कोर्ट ने भी जमीन श्यामदेव सिंह को सौंपने का आदेश दिया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
कोर्ट का कड़ा फैसला, अफसरों की जिम्मेदारी तय
प्रशासन की इस निष्क्रियता को देखते हुए कोर्ट ने डीएम के वेतन पर रोक लगाने के साथ ही एसपी को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आदेश की प्रति प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बेगूसराय के माध्यम से रजिस्ट्रार जनरल, पटना हाई कोर्ट को भेजी जाए।
यह मामला प्रशासन और पुलिस के बीच समन्वय की कमी को दर्शाता है। कोर्ट के बार-बार आदेश देने के बावजूद कार्रवाई न होना, प्रशासनिक लचरता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। इस फैसले के बाद जिले के अन्य लंबित मामलों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि यह स्पष्ट हो गया है कि कोर्ट अब किसी भी तरह की लापरवाही को नजरअंदाज नहीं करेगा।