उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के एक छोटे से गांव भठही बुजुर्ग के पंकज शुक्ला आज उत्तर प्रदेश-बिहार के लाखों प्रवासियों की “अनकही आवाज” बन चुके हैं। इंस्टाग्राम पर “हम बोलतानी” के नाम से मशहूर इस युवा के हैंडल ने भोजपुरी भाषा को सोशल मीडिया पर भावनाओं का माध्यम बनाकर एक सांस्कृतिक क्रांति ला दी है। परदेस की तन्हाई, मां-बाप का बुढ़ापा और गांव से टूटे रिश्तों के दर्द को शब्द देकर पंकज ने न सिर्फ लाखों लोगों को जोड़ा, बल्कि भोजपुरी कंटेंट के स्टीरियोटाइप को भी तोड़ा। आज उनके वीडियोज के व्यूज लाखों में और फॉलोअर्स की फौज में राजनीतिक-सामाजिक हस्तियां भी शामिल हैं।
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हॉस्टल से हार्टलैंड तक का सफर
पंकज का बचपन हॉस्टल की चारदीवारी में गुजरा। दिल्ली आकर पढ़ाई की, लेकिन मन हमेशा गांव की पगडंडियों में भटकता रहा। पंकज अपने दोस्तों से बात करते हुए अक्सर कहते कि “मम्मी-पापा रोज बूढ़े हो रहे हैं, मैं साल में सिर्फ छुट्टियों में ही उन्हें देख पाता हूँ।” फिर उनके शुभचिंतक सचिन शर्मा और नमन शुक्ला ने बोला की इतना अच्छा बोलता है वीडियो बना कर सोशल मीडिया पे डाल।यही वह जज़्बात था जिसने पंकज को “हम बोलतानी” के लिए प्रेरित किया। पंकज ने महसूस किया कि यह दर्द सिर्फ उसका नहीं, बल्कि उन लाखों प्रवासियों का है जो रोटी-रोजगार के लिए शहरों में फंसे हैं, लेकिन दिल से गांव के साथ जुड़े हैं।
अनाम रहकर नाम कमाया
पंकज ने शुरुआत में अपनी पहचान गोपनीय रखी। नाम छुपाया, तस्वीरें नहीं डालीं। मकसद था कि लोग इसे “किसी के भी बेटे-भाई” की आवाज समझें। यही रणनीति कारगर हुई। भोजपुरी में गहरी भावनाएं व्यक्त करने वाले उसके वीडियोज ने पहले यूट्यूब, फिर इंस्टाग्राम पर धूम मचा दी। “लोगों को लगने लगा कि ये कोई उनकी अपनी ही आत्मा की आवाज है।” आज उनके वीडियोज के व्यूज लाखों से मिलियन तक पहुंचते हैं और विदेशों से मैसेज आते हैं कि “आपकी आवाज ने हमें गांव से वापस जोड़ दिया है।”
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भोजपुरी का नया नैरेटिव
पंकज की सफलता सिर्फ व्यूज नहीं, बल्कि भोजपुरी समाज की मानसिकता को बदलने की मिसाल है। भोजपुरी कंटेंट को अक्सर “वल्गर” समझा जाता रहा, लेकिन “हम बोलतानी” ने इमोशनल स्टोरीटेलिंग से इस धारणा को चुनौती दी। उनकी टीम के लेखक मैकश, सचिन सिंह और सत्यम जैसे प्रोफेशनल्स, जो नौकरी के साथ समय निकालकर लिखते हैं, इस मुहिम की रीढ़ हैं। यह टीम “नारी विमर्श”, “पलायन का दर्द” और “युवाओं की बलि” जैसे विषयों को भोजपुरी की मिट्टी से जोड़कर पेश करती है।
छठ से लेकर सुलह तक
पंकज का कंटेंट सिर्फ वायरल नहीं होता, बल्कि समाज को गहराई से प्रभावित करता है। उनके वीडियोज ने लोगों को छठ पर घर लौटने, टूटे रिश्तों को जोड़ने और गांव की जड़ों से फिर से जुड़ने के लिए प्रेरित किया है। राजनीतिक-धार्मिक हस्तियां जैसे राजन जी महाराज का उन्हें फॉलो करना इस बात का प्रमाण है कि यह आवाज सीमाओं को पार कर रही है।
सपना ग्लोबल, पर दिल लोकल
पंकज का सपना अब भोजपुरी भावनाओं को विदेशों तक पहुंचाने का है। वे कहते हैं कि “मेरी कोशिश है कि भोजपुरी का यह अंदाज हिंदी आर्टिस्ट्स की तरह ग्लोबल स्टेज पर छाए।” “हम बोलतानी” की यह यात्रा साबित करती है कि भाषा चाहे कोई भी हो, अगर उसमें दिल की धड़कन हो, तो वह करोड़ों को एक सूत्र में बांध सकती है। पंकज ने न सिर्फ भोजपुरी को नया गौरव दिया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि सोशल मीडिया सिर्फ ट्रेंड्स नहीं, बल्कि संवेदनाओं का सेतु भी बन सकता है।