लोकसभा चुनाव 2024 में मतदाताओं ने ‘नोटा’ (NOTA) पर कम विश्वास जताया है, लेकिन बिहार में यह विकल्प अब भी सबसे अधिक लोकप्रिय बना हुआ है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार पूरे देश में नोटा का इस्तेमाल बीते दो आम चुनावों की तुलना में कम हुआ है।
2014 से लगातार घट रहा नोटा का क्रेज!
2014 में पहली बार जब ‘None of the Above’ (NOTA) यानी ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ विकल्प को ईवीएम में जोड़ा गया था, तब इसे 1.08% वोट मिले थे। लेकिन 2024 के चुनाव में यह आंकड़ा 0.99% पर आ गया, यानी धीरे-धीरे नोटा का प्रभाव घट रहा है।
हालांकि, यह मत प्रतिशत भले ही छोटा लगे, लेकिन यह उन सीटों पर निर्णायक साबित हो सकता है, जहां जीत-हार का अंतर कम होता है। कई सीटों पर ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं, जहां नोटा के वोट जीत-हार के मार्जिन से अधिक थे।
बिहार में सबसे ज्यादा ‘नकारात्मक वोटिंग’, नगालैंड में सबसे कम
इस बार भी बिहार नोटा का गढ़ साबित हुआ, जहां 2.07% लोगों ने सभी उम्मीदवारों को खारिज कर दिया। इसके बाद दादरा और नगर हवेली व दमन और दीव में 2.06% और गुजरात में 1.58% लोगों ने नोटा को चुना।
इसके विपरीत, नगालैंड में नोटा का सबसे कम प्रभाव रहा, जहां मात्र 0.21% लोगों ने इस विकल्प का प्रयोग किया।