हिंदी साहित्य के आकाश में एक नया सितारा चमका। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित “काका कालेलकर जीवनी-परक साहित्य पुरस्कार – स्वर्ण” से डॉ. राजेंद्र प्रताप सिंह को सम्मानित किया गया। उनकी कृति “श्री ॐ साई राम” ने न केवल आध्यात्मिकता की गहराइयों को छुआ, बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी एक नया मानदंड स्थापित किया। यह सम्मान महाराष्ट्र सरकार के सांस्कृतिक कार्य मंत्री आशीष शेलार ने प्रदान किया। डॉ. सिंह शिर्डी संस्थान के पूर्व ट्रस्टी और योगायतन ग्रुप ऑफ कंपनीज के प्रमुख हैं।
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साहित्य का महाकुंभ: रंगशारदा ऑडिटोरियम में हुआ समारोह
18 मार्च 2025 का दिन हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया। मुंबई के बांद्रा स्थित रंगशारदा ऑडिटोरियम में आयोजित इस समारोह में देशभर के साहित्यकार, विद्वान और पाठक उपस्थित थे। यह केवल एक पुरस्कार वितरण समारोह नहीं था, बल्कि हिंदी साहित्य की संवेदना, संस्कृति और समर्पण का जीवंत उत्सव था।
“श्री ॐ साई राम”: आध्यात्मिकता और साहित्य का अनूठा संगम
डॉ. राजेंद्र प्रताप सिंह की कृति “श्री ॐ साई राम” ने आध्यात्मिकता और साहित्य के बीच एक सेतु का काम किया है। यह पुस्तक न केवल साई बाबा के जीवन और शिक्षाओं पर प्रकाश डालती है, बल्कि मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक जागृति को भी साहित्यिक ऊंचाइयों तक ले जाती है। इस कृति ने पाठकों और आलोचकों दोनों को समान रूप से प्रभावित किया है।
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी: हिंदी साहित्य का संवाहक
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने वर्षों से हिंदी साहित्य के संवर्धन और सम्मान में अग्रणी भूमिका निभाई है। यह पुरस्कार न केवल साहित्यकारों को प्रोत्साहित करता है, बल्कि हिंदी भाषा के उत्थान में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। अकादमी का यह प्रयास हिंदी साहित्य को नई ऊर्जा और दिशा प्रदान कर रहा है।
साहित्य जगत में उत्साह की लहर
डॉ. राजेंद्र प्रताप सिंह के इस सम्मान ने साहित्य जगत में उत्साह की लहर पैदा कर दी है। यह न केवल उनकी साधना और मेहनत का परिणाम है, बल्कि हिंदी साहित्य के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण भी है। यह क्षण हिंदी साहित्य प्रेमियों और लेखकों के लिए एक प्रेरणादायक संदेश लेकर आया है।
यह सम्मान समारोह हिंदी साहित्य के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत है। डॉ. राजेंद्र प्रताप सिंह की कृति “श्री ॐ साई राम” ने जिस तरह से आध्यात्मिकता और साहित्य को जोड़ा है, वह भविष्य में और भी ऐसी कृतियों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। यह दिन हिंदी साहित्य के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा।
हिंदी साहित्य का यह स्वर्णिम क्षण न केवल डॉ. राजेंद्र प्रताप सिंह के लिए, बल्कि पूरे साहित्य जगत के लिए गर्व का पल है। यह सम्मान हिंदी साहित्य की समृद्धि और उसके भविष्य के प्रति आशा जगाता है। आने वाले समय में और भी ऐसी कृतियां सामने आएंगी, जो हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगी।