वॉशिंगटन: दिल्ली में राजनाथ सिंह और अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर तुलसी गबार्ड के बीच हुई मुलाकात के बाद खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को गीदड़ भभकी दी है। गुरपतवंत सिंह पन्नू, आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस यानि SFJ का नेता है। उसने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को एक नई गीदड़ भभकी दी है। ये गीदड़ भभकी तब आई है जब एक दिन पहले ही राजनाथ सिंह ने अमेरिकी खुफिया प्रमुख तुलसी गबार्ड के साथ अपनी बैठक में एसएफजे को आतंकवादी समूह के रूप में प्रतिबंधित करने की मांग की थी। पन्नू ने राजनाथ सिंह को अमेरिका की धरती पर आकर अंजाम भुगतने की गीदड़भभकी दी है।
सिख फॉर जस्टिस ने भारतीय रक्षा मंत्री पर निशाना साधा है। उसकी बौखलाहट इसलिए है, क्योंकि SFJ को लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन उसपर प्रतिबंध लगा सकता है और संगठन को आतंकवादी समूह घोषित कर सकता है। उसके बाद उसके लिए अमेरिका की धरती से भारत के खिलाफ मुहिम चलाना मुश्किल हो जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक राजनाथ सिंह और तुलसी गबार्ड के बीच खालिस्तान मुद्दे को लेकर बातचीत की गई है। राजनाथ सिंह ने इस दौरान तुलसी गबार्ड से एसएफजे के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्नान किया है।इसके अलावा राजनाथ सिंह ने तुलसी गबार्ड को बब्बर खालसा के साथ एसएफजे के संबंधों को लेकर भी जानकारी दी है। वहीं राजनाथ सिंह ने अमेरिका में हिंदू मंदिरों को निशाना बनाकर किए जा रहे हमले को लेकर तुलसी गबार्ड के साथ विस्तार से बात की है और भारत की चिंता जताई है।
आपको बता दें कि SFJ की स्थापना 2007 में गुरपतवंत सिंह पन्नून ने ही की थी। इसके पास अमेरिका और कनाडा, दोनों जगहों की नागरिकता है। माना जाता है कि इसकी उम्र करीब 50 साल के आसपास है। इसका मकसद भारत को बांटकर खालिस्तान का निर्माण करना है। माना जाता है कि इसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI से मदद मिलती है। बब्बर खालसा के कई आतंकवादी पाकिस्तान में आईएसआई की निगरानी में रहते हैं।
बता दें पन्नून का जन्म 1960 के दशक में अमृतसर के पास खानकोट में हुआ था। जब ये बड़ा हो रहा था उस वक्त पंजाब में खालिस्तान आंदोलन चरम पर था। इसने 1990 के दशक में पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की और फिर ये अमेरिका चला गया। अमेरिका जाने के बाद ये 2000 की दशक से अमेरिका और कनाडा में खालिस्तानी मूवमेंट को हवा देने की कोशिश कर रहा है। 2018 में तथाकथित “खालिस्तान जनमत संग्रह” की घोषणा करने के बाद ये चर्चा में आया। इसे खालिस्तान का सबसे बड़ा नेता और चेहरा माना जाने लगा है।