दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना एक साधारण हादसे से कहीं अधिक गंभीर साबित हुई। इस आग ने न केवल उनके घर में तबाही मचाई, बल्कि भारतीय न्यायपालिका की छवि पर भी एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया। जब दमकल विभाग आग बुझाने पहुंचा, तो वहां जो कुछ मिला, उसने पूरे देश को चौंका दिया—कमरे के एक हिस्से में भारी मात्रा में नकदी पाई गई। इसके बाद से ही पूरे न्यायिक सिस्टम में भूचाल सा आ गया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जब आग लगी, तब न्यायमूर्ति वर्मा शहर से बाहर थे। उनके परिवार के सदस्यों ने तुरंत फायर ब्रिगेड और पुलिस को सूचना दी। दमकल कर्मियों ने आग पर काबू पाने के दौरान जब घर के एक कमरे का दरवाजा खोला, तो वहां नोटों की गड्डियां बिखरी हुई थीं। जैसे ही पुलिस को इस बारे में जानकारी मिली, वरिष्ठ अधिकारियों तक मामला पहुंचाया गया और फिर यह सूचना सीधे सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों और मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना तक पहुंच गई।
इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से मुख्य न्यायाधीश ने तुरंत सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की बैठक बुलाई। हालात की गंभीरता को देखते हुए कॉलेजियम ने तत्काल प्रभाव से न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल हाईकोर्ट—इलाहाबाद—स्थानांतरित करने का फैसला लिया। गौरतलब है कि 2021 में ही उनका तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट से दिल्ली हाईकोर्ट में किया गया था।
न्यायपालिका के कुछ वरिष्ठ सदस्यों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि केवल स्थानांतरण से न्यायपालिका की साख पर लगे दाग नहीं धुल सकते। यदि इस मामले में गहराई से जांच नहीं की गई, तो यह न्याय व्यवस्था पर आम जनता के विश्वास को कमजोर कर सकता है। कॉलेजियम के कुछ सदस्यों ने सुझाव दिया कि न्यायमूर्ति वर्मा को अपना पद छोड़ देना चाहिए। यदि वे इस्तीफा देने से इनकार करते हैं, तो संसद के जरिए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।
संविधान के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में एक इन-हाउस जांच प्रक्रिया निर्धारित की थी, जिसके अंतर्गत CJI पहले आरोपी न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगते हैं। यदि जवाब संतोषजनक नहीं होता, तो तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की एक विशेष जांच समिति गठित की जाती है। अब देखना होगा कि CJI संजीव खन्ना इस मामले में आगे क्या कदम उठाते हैं।
इस घटना ने पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारी न्यायिक व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष है? या फिर इसमें भी कुछ ऐसी सच्चाइयां छुपी हैं, जो अभी तक सामने नहीं आई हैं?