बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट तेज़ हो चुकी है। सियासी दलों ने अपनी रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है और सबसे ज्यादा खींचतान सीट शेयरिंग को लेकर हो रही है। एनडीए के भीतर भी समीकरण बदलने लगे हैं, खासकर चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) [LJP(R)] के तेवर कुछ बदले-बदले नजर आ रहे हैं। चर्चा तो यह है कि लोजपा (रामविलास) को 15 से 20 सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है, लेकिन पार्टी इससे कहीं ज्यादा सीटों पर दावा ठोक रही है।
दरअसल, लोजपा (रामविलास) ने एनडीए के अंदर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 2025 के चुनाव से पहले ही कई सीटों पर दावा पेश कर दिया है। पार्टी ने महनार, रघुनाथपुर, गोविंदगंज, गायघाट, खगड़िया, ओबरा, चेनारी, जमालपुर, ब्रह्मपुर, जगदीशपुर, महुआ, साहेबपुर कमाल, समस्तीपुर, हसनपुर, विभूतिपुर, मीनापुर, अलौली, लालगंज, दिनारा और बेलसंड जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर अपनी दावेदारी जताई है। ये वे सीटें हैं, जहां पार्टी खुद को मजबूत मानती है और अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है।
NDA में सीटों के बंटवारे पर बढ़ी खींचतान
लोजपा की बढ़ी हुई मांग ने एनडीए के अंदर खींचतान बढ़ा दी है। भाजपा और जदयू पहले ही अपनी सीटों को लेकर रणनीति बना चुके हैं। जदयू 100 से 103 सीटों पर लड़ने की योजना बना रही है, जबकि भाजपा भी लगभग समान संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। ऐसे में छोटे सहयोगी दलों के लिए सीटों का समीकरण सेट करना बीजेपी के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।
चिराग पासवान को लेकर चर्चा यह है कि अगर लोजपा (रामविलास) को उसकी मांग के अनुसार सीटें नहीं मिलीं, तो वह एनडीए के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। ऐसा पहले भी हो चुका है। चिराग पासवान पहले भी गठबंधन की राजनीति से अलग हटकर चुनाव लड़ चुके हैं। ऐसे में यह चर्चा भी है कि यदि उन्हें उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं, तो वे ‘प्लान बी’ पर काम कर सकते हैं।
बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि लोजपा (रामविलास) को संतुष्ट कैसे किया जाए? पिछली बार 2020 के चुनाव में लोजपा का प्रदर्शन भले ही कुछ खास न रहा हो, लेकिन वह कई सीटों पर वोट कटवा साबित हुई थी, जिससे जदयू को नुकसान हुआ था। इस बार अगर लोजपा फिर से बगावती तेवर अपनाती है, तो इसका सीधा असर एनडीए के वोट बैंक पर पड़ सकता है।