ढाका: बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने आगामी चुनावों से पहले 1971 के मुक्ति संग्राम की विरासत को लेकर नई चिंता जताई है। शेख हसीना की कट्टर विरोधी इस पार्टी ने अब स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को कमजोर करने के प्रयासों पर सवाल उठाते हुए बड़ा यू-टर्न लिया है। बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने मंगलवार को ढाका में दिए बयान में कहा कि कुछ ताकतें जानबूझकर 1971 के युद्ध की ऐतिहासिक अहमियत को कम कर रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यह न केवल उस संघर्ष में शहीद हुए लोगों के बलिदान का अपमान है, बल्कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता की नींव के लिए भी खतरा बन सकता है।
राजनीतिक रणनीति या वैचारिक बदलाव?
फखरुल का यह बयान ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश में संभावित राष्ट्रीय चुनावों की सुगबुगाहट तेज हो गई है। यह बीएनपी के पुराने रुख में बदलाव का संकेत देता है, क्योंकि पहले इस पार्टी के कार्यकर्ता मुजीब विरोधी आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं। इनमें राष्ट्रपति कार्यालय से शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने और उनके धानमंडी 32 स्थित आवास को नष्ट करने जैसी घटनाएं शामिल रही हैं। फखरुल ने कहा, “कुछ समूह 1971 की घटनाओं को नकारने का प्रयास कर रहे हैं, जो बेहद खतरनाक है।” उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि चुनावी समीकरण को प्रभावित करने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। बीएनपी का मानना है कि यह सब मतदाताओं के बीच भ्रम फैलाने की रणनीति है, ताकि उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर की जा सके।
पाठ्यक्रम संशोधन ने बढ़ाई बहस
हाल ही में बांग्लादेश के स्कूली पाठ्यक्रम में किए गए बदलावों ने इस मुद्दे को और गरमा दिया है। नई किताबों में शेख मुजीबुर रहमान की भूमिका को सीमित कर, जियाउर रहमान को स्वतंत्रता की घोषणा का श्रेय दिया गया है। बीएनपी ने इसे अपनी विचारधारा के अनुरूप बताया, लेकिन इस बदलाव ने देश में एक नई राजनीतिक और ऐतिहासिक बहस को जन्म दे दिया है।फखरुल ने कहा, “हमें अपनी स्वतंत्रता की सच्ची कहानी नई पीढ़ी तक पहुंचानी होगी।” उन्होंने उन ताकतों की आलोचना की जो ऐतिहासिक तथ्यों को बदलने का प्रयास कर रही हैं।
चुनाव से पहले बढ़ता राजनीतिक तनाव
बीएनपी ने अंतरिम सरकार से निष्पक्ष चुनाव कराने की मांग की है। पार्टी का कहना है कि अगर सरकार ने लोकतंत्र के खिलाफ कोई कदम उठाया, तो वे विरोध के लिए तैयार हैं। दूसरी ओर, छात्र-नेतृत्व वाली नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) ने अवामी लीग को चुनाव से बाहर रखने की मांग कर, राजनीतिक तनाव और बढ़ा दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि 1971 के युद्ध की विरासत आगामी चुनावों में एक अहम मुद्दा बनेगी, जिससे मतदाताओं की सोच और राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।