ढाका: बांग्लादेश में इन दिनों सियासी हलचल तेज है और सेना प्रमुख जनरल वकार उज-जमान चर्चा के केंद्र में हैं। शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने वाले छात्र आंदोलन के बाद अब निशाने पर सेना प्रमुख खुद आ गए हैं। छात्र नेताओं का आरोप है कि जनरल जमान अवामी लीग को फिर से सत्ता में लाने की साजिश रच रहे हैं। कुछ लोग यह भी दावा कर रहे हैं कि वह मोहम्मद यूनुस को हटाकर सत्ता पर कब्जा करने की तैयारी में हैं। इस बीच, ढाका में सेना की सभी डिवीजनों से सैनिकों को जुटाने का आदेश चर्चा को और हवा दे रहा है। तो क्या वाकई जनरल जमान तख्तापलट की योजना बना रहे हैं? आइए इसे गहराई से समझते हैं।
जनरल वकार उज-जमान: संतुलन का सिपाही
जनरल वकार उज-जमान को एक पेशेवर और संतुलित सैन्य अधिकारी के तौर पर जाना जाता है। इंडिया टुडे के लेखक सुबीर भौमिक के मुताबिक, उनके करीबियों का कहना है कि जमान पुराने स्कूल के हैं और सैन्य शासन को बांग्लादेश के लिए ठीक नहीं मानते। उनका मानना है कि बंगाली समाज का इतिहास सैन्य हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करता। वह सेना को एक पेशेवर संस्था के रूप में देखते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में अपनी पहचान बना चुकी है।
जुलाई आंदोलन में दिखा संयम
पिछले साल जुलाई में छात्र आंदोलन के दौरान जनरल जमान की भूमिका अहम रही। सेना के फैसलों से वाकिफ लोगों का कहना है कि वह छात्रों पर अंधाधुंध बल प्रयोग के खिलाफ थे। उनका मानना था कि ऐसा करना सेना की छवि को नुकसान पहुंचाएगा। संकट के उस दौर में उन्होंने न सिर्फ गोलीबारी से इनकार किया, बल्कि शेख हसीना और उनके करीबियों को सुरक्षित निकालकर खूनखराबा भी रोका। इसके बाद उन्होंने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनवाने में मदद की। एक सैन्य अधिकारी के हवाले से कहा गया, “अगस्त की अराजकता में कोई भी सेना प्रमुख सत्ता हथिया सकता था, लेकिन यह कहना कि जमान तख्तापलट चाहते हैं, बेबुनियाद है।”
छात्र नेताओं का हमला और विवाद
हाल ही में छात्र नेता हसनत अब्दुल्ला ने जनरल जमान पर अवामी लीग को दोबारा सत्ता में लाने का आरोप लगाकर माहौल गरमा दिया। उन्होंने जमान को भारत की कठपुतली तक कह डाला। लेकिन जमान को जानने वाले इसे खारिज करते हैं। उनका कहना है कि सेना प्रमुख सभी दलों के लिए निष्पक्ष माहौल चाहते हैं और जल्द चुनाव करवाकर लोकतंत्र बहाल करने के पक्षधर हैं। वह खुद को बांग्लादेश में लोकतंत्र के रक्षक के रूप में देखे जाने की इच्छा रखते हैं।
अंतरिम सरकार और सेना का टकराव
बांग्लादेश सैन्य खुफिया विभाग के एक पूर्व प्रमुख के हवाले से भौमिक बताते हैं कि अंतरिम सरकार की संवैधानिक नींव कमजोर है। जनरल जमान इसे लंबे समय तक चलने देने के खिलाफ हैं। दूसरी ओर, छात्र नेता अपनी नई पार्टी को मजबूत करने के लिए समय चाहते हैं और अवामी लीग पर प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं। यह मतभेद यूनुस और जमान के बीच तनाव का कारण बन रहा है। यूनुस सुधारों के बाद चुनाव चाहते हैं, जबकि जमान 2025 के भीतर समावेशी चुनाव के हिमायती हैं।
क्या होगा सेना का अगला कदम?
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर यूनुस उनकी बात नहीं मानते तो जमान क्या करेंगे? संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर सकते हैं। जमान राष्ट्रपति शहाबुद्दीन चप्पू को इसके लिए प्रेरित कर सकते हैं। इससे अंतरिम सरकार भंग हो सकती है और जल्द चुनाव के लिए नई व्यवस्था बन सकती है। सेना कट्टरपंथियों और अपराधियों पर नकेल कसकर कानून-व्यवस्था बहाल करने में भी मदद कर सकती है। हालांकि, सैन्य सूत्रों का कहना है कि जमान जब तक मजबूरी न हो, सख्त कदम से बचेंगे और बातचीत से हल निकालना पसंद करेंगे।
निष्कर्ष: तख्तापलट या लोकतंत्र की राह?
फिलहाल, ढाका में सेना की मौजूदगी और जमान की चेतावनियों से तख्तापलट की अटकलें जोरों पर हैं। लेकिन उनके इतिहास और रवैये को देखें तो वह सत्ता हथियाने के बजाय लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में काम करते दिखते हैं। असली सवाल यह है कि यूनुस और छात्र नेताओं के साथ उनका टकराव क्या रंग लाएगा। क्या बांग्लादेश में सेना फिर सत्ता की बागडोर संभालेगी, या लोकतंत्र की राह खुलेगी? यह वक्त ही बताएगा।