बिहार की राजनीति में आज वो दृश्य सामने आया जिसे देखकर खुद राहुल गांधी को भी ठहरना गवारा नहीं हुआ। जिस वक्त कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पार्टी को मज़बूत करने पटना पहुंचे थे, उसी वक़्त कांग्रेस प्रदेश कार्यालय में ऐसा बवाल मचा कि पूरी पार्टी की आंतरिक खामियां सबके सामने नंगी हो गईं।

बैठक नहीं, अखाड़ा बना प्रदेश कार्यालय
पटना स्थित कांग्रेस प्रदेश कार्यालय में बुलाई गई अहम बैठक उस वक़्त शर्मनाक मोड़ पर पहुंच गई जब कांग्रेसी नेता आपस में भिड़ गए। बात इतनी बढ़ गई कि एक-दूसरे पर लात-घूंसे चलने लगे। वो भी राहुल गांधी की मौजूदगी में। वहां मौजूद वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह भी इस तमाशे के गवाह बने। पार्टी को मज़बूती देने की बात करने पहुंचे राहुल गांधी यह सब देखकर स्तब्ध रह गए और बैठक को अधूरा छोड़कर बिना कोई टिप्पणी किए निकल गए।
राहुल गांधी ने अपने बिहार दौरे की शुरुआत बेगूसराय में कन्हैया कुमार के साथ ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ पदयात्रा से की थी। वहां उन्होंने जनता से सीधा संवाद किया, संविधान और न्याय की बातें कहीं। लेकिन पटना आते ही पूरी तस्वीर बदल गई। एक ओर वे संविधान की गरिमा और विचारधारा की बात कर रहे थे, दूसरी ओर पार्टी के भीतर अनुशासन और आत्म-संयम की पूरी तरह से धज्जियाँ उड़ रही थीं। जो बैठक पार्टी को नयी दिशा देने के लिए बुलाई गई थी, वह सत्ता की अंतर्कलह का शर्मनाक प्रदर्शन बन गई।

यह घटना सिर्फ एक क्षणिक झगड़ा नहीं, बल्कि कांग्रेस की उस अंदरूनी कमजोरी का प्रतीक है जो आज भी उसके पुनरुद्धार के रास्ते में सबसे बड़ी दीवार बन कर खड़ी है। सवाल ये है कि क्या जो पार्टी खुद के नेताओं को एकजुट नहीं रख सकती, वो राज्य में प्रभावशाली विपक्ष बनने की स्थिति में है? राहुल गांधी जैसे नेता जब जनता के बीच संविधान, समानता और न्याय की बात कर रहे हैं, तो पार्टी कार्यकर्ताओं का ऐसा व्यवहार उन विचारों की आत्मा पर आघात करता है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की यह गंभीर फजीहत उसके मिशन को बड़ा झटका दे सकती है। राहुल गांधी जिस बदलाव की बात कर रहे थे—OBC, दलित और महिलाओं को नेतृत्व में लाने की कोशिश—वह क्या इसी तरह की अराजकता में डूब जाएगी?