बिहार की राजनीति में इन दिनों एक अजीब सी हलचल है। कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार की सक्रियता और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस ने RJD की मुश्किलें बढ़ाने की रणनीति अपना ली है? क्या विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन का स्वरूप बदलने वाला है?
कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार बिहार में लगातार सक्रिय हैं। उनकी यात्राएं, जनसभाएं और बयान कांग्रेस की भविष्य की रणनीति को स्पष्ट कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में कन्हैया कुमार को बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है। खुद कन्हैया भी कह चुके हैं कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, वह उसे निभाने के लिए तैयार हैं।
लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि RJD इस पर चुप क्यों है? महागठबंधन का सबसे बड़ा दल होने के बावजूद तेजस्वी यादव कन्हैया की यात्रा पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। क्या उन्हें कांग्रेस की इस रणनीति का अंदाजा हो चुका है?
कांग्रेस ने हाल ही में पप्पू यादव को अहमदाबाद में हुए अधिवेशन में बुलाया, जिससे यह साफ हो गया कि पार्टी बिहार में अपने दम पर संगठन को मजबूत करने में लगी है। वहीं, कन्हैया कुमार को आगे कर कांग्रेस ने RJD को असहज कर दिया है। तेजस्वी यादव की चुप्पी यह दिखा रही है कि वह इस बदलाव से कितने परेशान हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार कह रहे हैं कि उनकी लड़ाई सिर्फ दलित, मुस्लिम और अल्पसंख्यकों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि वे OBC वोट बैंक को भी अपनी ओर आकर्षित करेंगे। यह बयान सीधे-सीधे RJD के कोर वोट बैंक पर हमला है।
यही नहीं, बिहार कांग्रेस में भी संघठनात्मक बदलाव किए जा रहे हैं, और कृष्णा अलवरू के बयान यह साफ कर रहे हैं कि कांग्रेस इस बार बिहार में कुछ बड़ा करने की तैयारी में है। इस पूरे घटनाक्रम से यह सवाल उठता है कि क्या बिहार में महागठबंधन का स्वरूप बदलेगा? क्या कांग्रेस RJD को किनारे कर कन्हैया कुमार और पप्पू यादव जैसे नए चेहरों को आगे कर खुद को मजबूत करने की कोशिश में है?
आगामी विधानसभा चुनाव में क्या कांग्रेस और RJD एकजुट रहेंगे या फिर तेजस्वी की चुप्पी किसी बड़े सियासी तूफान का इशारा है? बिहार की राजनीति में यह नया समीकरण बन रहा है या महागठबंधन की अंदरूनी लड़ाई खुलकर सामने आने वाली है?
आने वाले दिनों में तस्वीर और साफ होगी, लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है।