बिहार में जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में चलाए गए परिवार नियोजन पखवाड़े की जो रिपोर्ट आई है, उसने भागलपुर को दो बेहद विपरीत तस्वीरों के बीच खड़ा कर दिया है। एक ओर जहां कंडोम वितरण में भागलपुर ने 206% की उपलब्धि के साथ पूरे राज्य में पहला स्थान हासिल किया है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं की बंध्याकरण और पुरुषों की नसबंदी में यह जिला पिछड़ते-पिछड़ते शर्मसार हो गया।
आंकड़ों की दो दुनिया: सफलता भी, विफलता भी
राज्य स्वास्थ्य समिति द्वारा 17 से 29 मार्च के बीच आयोजित परिवार नियोजन पखवाड़ा का उद्देश्य था – दंपतियों को जनसंख्या नियंत्रण के विकल्पों के प्रति जागरूक करना और उन्हें स्थायी या अस्थायी उपाय अपनाने के लिए प्रेरित करना।
लेकिन भागलपुर का हाल कुछ यूं रहा:
मापदंड | लक्ष्य | उपलब्धि | राज्य में रैंक |
---|---|---|---|
महिला बंध्याकरण | 2010 | 1258 | 15वां स्थान |
पुरुष नसबंदी | 100 | 1 | 30वां स्थान |
कंडोम वितरण | 121,750 | 250,893 | 1वां स्थान (206%) |
जहां एक ओर भागलपुर ‘कंडोम वितरण चैंपियन’ बना, वहीं बंध्याकरण और नसबंदी के मामलों में यह फिसड्डी साबित हुआ। सिर्फ एक पुरुष की नसबंदी, वो भी पूरे पखवाड़े में – यह आंकड़ा स्वास्थ्य महकमे की पूरी रणनीति पर सवाल खड़ा करता है।
भागलपुर के सिविल सर्जन डॉ. अशोक कुमार ने मीडिया को बताया कि “परिवार नियोजन पखवाड़े में जिले का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है। हम इसकी समीक्षा करेंगे कि प्रखंडों में आखिर गलती कहां हुई।” वहीं स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि “कंडोम वितरण आसान, बिना सामाजिक बाधा वाला और गैर-आक्रामक विकल्प है। इसे लेने में लोग सहज होते हैं और इसे गोपनीयता में रखा जा सकता है।”
यही कारण है कि कंडोम के मामले में भागलपुर की झोली भर गई, लेकिन जब बात स्थायी समाधान की आई, तो जमीनी हकीकत कमजोर पड़ गई।
बाकी जिलों से तुलना – भागलपुर क्यों पीछे?
- महिला बंध्याकरण में पश्चिमी चंपारण (82%), मधेपुरा (77%) और अररिया (76%) जैसे जिलों ने ज़बरदस्त प्रदर्शन किया।
- पुरुष नसबंदी में शेखपुरा (68%), वैशाली (45%) और अरवल (34%) भागलपुर से कहीं आगे रहे।