श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर: केंद्र सरकार द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित करने के फैसले पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। यह फैसला 23 अप्रैल, 2025 को पहलगाम के बैसरण घाटी में हुए एक आतंकी हमले के बाद लिया गया, जिसमें 26 लोगों की जान गई थी। भारत सरकार ने इस हमले के जवाब में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई इस संधि को निलंबित कर दिया, जो भारत-पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे का आधार थी।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “भारत सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं। जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है, हम कभी भी सिंधु जल संधि के पक्ष में नहीं रहे हैं। हमारा हमेशा से मानना रहा है कि सिंधु जल संधि जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए सबसे अनुचित दस्तावेज है।” उन्होंने आगे कहा कि यह संधि क्षेत्र के लिए पानी की कमी और संसाधनों के अभाव का मुख्य कारण रही है, जिससे खेती और बिजली उत्पादन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।
संधि का इतिहास और जम्मू-कश्मीर पर प्रभाव
सिंधु जल संधि के तहत भारत को सिंधु नदी प्रणाली के कुल पानी का केवल 16% (लगभग 41 अरब क्यूबिक मीटर) हिस्सा मिलता है, जबकि पाकिस्तान को 84% (218 अरब क्यूबिक मीटर) पानी आवंटित किया गया है। जम्मू-कश्मीर में इस संधि के कारण सिंचाई और जलविद्युत परियोजनाओं पर कई प्रतिबंध हैं। संधि के अनुसार, भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) से केवल 7,01,000 एकड़ जमीन की सिंचाई के लिए पानी का उपयोग करने की अनुमति है, साथ ही सीमित जल भंडारण और रन-ऑफ-रिवर बांध बनाने की छूट है। लेकिन राज्य में अभी तक इसकी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने पहले भी इस संधि को लेकर असंतोष जताया है। साल 2003 में विधानसभा ने सर्वसम्मति से संधि को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया था, और 2016 में भी संधि में संशोधन की मांग की गई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस संधि के कारण जम्मू-कश्मीर में सिंचित भूमि और जलविद्युत विकास की गति संतोषजनक नहीं रही है।
संधि का निलंबन भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को और गहरा करने वाला कदम माना जा रहा है। यह निर्णय पहलगाम हमले के बाद भारत की ओर से अब तक की सबसे सख्त प्रतिक्रिया है। इसके साथ ही भारत ने अटारी सीमा को बंद कर दिया है और पाकिस्तानी सलाहकारों को अवांछित घोषित करते हुए उन्हें एक सप्ताह के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया है।
पाकिस्तान के लिए यह निलंबन गंभीर संकट का कारण बन सकता है, क्योंकि उसकी 80% खेती (लगभग 16 मिलियन हेक्टेयर) सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि भारत इन नदियों के प्रवाह को रोकता है या कम करता है, तो पाकिस्तान में पानी की कमी तत्काल और गंभीर प्रभाव डालेगी।
हालांकि, इस निलंबन का क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रभाव होगा, यह अभी देखने वाली बात है। विश्व बैंक, जिसने इस संधि की मध्यस्थता की थी, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रतिक्रिया भी इस मामले में अहम होगी।