नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति ने आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल करने का फैसला लिया है। यह निर्णय देश में सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
वैष्णव ने कहा, “कांग्रेस सरकारों ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया है। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसे मंत्रिमंडल में विचार के लिए रखा था, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब हमारी सरकार पारदर्शी और जिम्मेदार तरीके से इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही है।”
उन्होंने आगे बताया कि कुछ राज्यों ने पहले जाति सर्वेक्षण किए, लेकिन कई बार यह प्रक्रिया राजनीतिक लाभ के लिए अपारदर्शी रही, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ा। इस फैसले का मकसद जाति आधारित आंकड़ों को व्यवस्थित करना और सामाजिक नीतियों को अधिक प्रभावी बनाना है।
जाति जनगणना का इतिहास भारत में 1931 तक रहा है, जब औपनिवेशिक सरकार ने इसे शामिल किया था। 1951 के बाद इसे राष्ट्रीय एकता के लिए हटा दिया गया था। अब इस फैसले से देश में सामाजिक और आर्थिक नीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
हालांकि, इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे सामाजिक समानता की दिशा में सकारात्मक कदम मान रहे हैं, तो कुछ इसे जातिगत विभाजन को बढ़ावा देने वाला कदम बता रहे हैं।
सवाल यह है कि क्या यह कदम भारत को एकजुट करेगा या नए सामाजिक तनावों को जन्म देगा? आने वाले दिनों में इस पर बहस और तेज होने की संभावना है।