देश की राजनीति में जातिगत जनगणना को लेकर बहस फिर तेज हो गई है। इस मुद्दे पर आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ा बयान देते हुए कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों पर तीखा हमला बोला। शाह ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए इस मुद्दे को दबाया और अब विपक्ष में रहते हुए इसे राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है।
अमित शाह का बयान: “बीजेपी ने कभी जातिगत जनगणना का विरोध नहीं किया”
प्रेस कांफ्रेंस में अमित शाह ने कहा:
“कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने दशकों तक सत्ता में रहते हुए जातिगत जनगणना की मांग को नजरअंदाज किया। आज वे राजनीति कर रहे हैं। बीजेपी ने हमेशा समावेशी विकास की बात की है। यह फैसला पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण की दिशा में अहम कदम होगा।”
शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह का निर्णय जल्दबाज़ी में नहीं लिया जाना चाहिए, बल्कि सोच-विचार और तैयारी के बाद लागू होना चाहिए, ताकि इसका उद्देश्य पूरा हो सके।
विपक्ष का पलटवार: तेजस्वी यादव का बयान
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा:
“जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ी जीत है। बीजेपी को अपनी मानसिकता बदलनी होगी, जो गरीबों को सिर्फ वोट बैंक समझती है। अब यह समय है कि सही आंकड़ों के आधार पर नीतियां बनें।”
जातिगत जनगणना की पृष्ठभूमि
भारत में आखिरी बार जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। 2011 में UPA सरकार ने एक सामाजिक-आर्थिक और जातिगत सर्वेक्षण (SECC) कराया, लेकिन उसकी जातिगत जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया गया।
हाल ही में बिहार सरकार द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण और उसके आंकड़ों ने देशव्यापी जातिगत जनगणना की मांग को नई ऊर्जा दी है।
बीजेपी की स्थिति: सतर्कता या रणनीति?
2011 और 2021 में केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना के मामले में एससी-एसटी के बाहर की जातियों की गणना से इनकार किया था। लेकिन अब अमित शाह का बयान इस बात का संकेत है कि बीजेपी बदलते सामाजिक और राजनीतिक माहौल को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर अपने रुख में लचीलापन ला सकती है।