श्रीनगर: जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के प्रमुख और वरिष्ठ नेता फारूक अब्दुल्ला ने राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने के केंद्र सरकार के हालिया फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इससे सबसे ज्यादा फायदा पिछड़े वर्गों को होगा, जिनकी संख्या अब तक सटीक रूप से दर्ज नहीं की जा रही थी।
फारूक अब्दुल्ला ने कहा, “लोग लंबे समय से इस बारे में बात कर रहे थे, शुक्र है कि कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी है। इससे सबसे ज्यादा फायदा पिछड़ों को होगा, उनकी संख्या नहीं गिनी जाती थी। मुझे लगता है कि मुसलमानों की भी गिनती होनी चाहिए, हमें पता होना चाहिए कि हम कितने हैं।”
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) की बैठक में आगामी जनगणना में जाति आधारित आंकड़े शामिल करने का फैसला लिया। यह निर्णय स्वतंत्रता के बाद से चली आ रही उस नीति को बदलता है, जिसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को छोड़कर जाति आधारित गणना नहीं की जाती थी। 1951 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने सामाजिक विभाजन को बढ़ावा न देने के लिए जाति जनगणना को बंद कर दिया था। हालांकि, 1961 में राज्यों को अपने स्तर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची तैयार करने की अनुमति दी गई थी।
फारूक अब्दुल्ला ने इस बात पर भी जोर दिया कि मुसलमानों की आबादी को सही तरीके से गिना जाना चाहिए। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में मुसलमानों की आबादी 17.22 करोड़ (14.2%) थी, जो इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश बनाता है। फिर भी, कई विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी संख्या को अक्सर कम करके आंका जाता है।
यह फैसला न केवल सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को समझने में मदद करेगा, बल्कि सरकारी नीतियों, आरक्षण व्यवस्था और राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे OBC समुदायों के भीतर उप-वर्गीकरण और बढ़ी हुई आरक्षण की मांग को बल मिल सकता है।
हालांकि, कुछ लोग इस फैसले पर चिंता भी जता रहे हैं कि जाति आधारित जनगणना सामाजिक विभाजन को और गहरा सकती है। लेकिन फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं का मानना है कि यह कदम समाज के हाशिए पर रहने वाले समुदायों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।