बिहार की राजनीति में एक बार फिर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने हलचल मचा दी है। सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों को फिर से अपने सियासी फोकस में रखते हुए ओवैसी ने एलान किया है कि उनकी पार्टी इस बार के विधानसभा चुनाव में पहले से अधिक सीटों पर विजय हासिल करेगी। खास बात यह है कि ओवैसी ने बहादुरगंज से उम्मीदवार की घोषणा के साथ ही दो जनसभाओं की तारीखें भी तय कर दी हैं – 3 और 4 मई।
पिछली जीत बनी आत्मविश्वास की बुनियाद
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने बिहार की 18 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसमें ज़्यादातर सीमांचल क्षेत्र की थीं। किशनगंज जैसे जिले में, जहां मुस्लिम आबादी 67% से अधिक है, वहां AIMIM की मजबूत पकड़ देखने को मिली थी। इसी सफलता को आधार बनाकर पार्टी अब नए सिरे से मैदान में उतर रही है।
ओवैसी का यह बयान न केवल आत्मविश्वास से भरपूर है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि उनके विधायकों के दूसरी पार्टियों में शामिल होने से पार्टी को जो नुकसान हुआ, अब AIMIM उससे उबर चुकी है और जनता उन्हें फिर से समर्थन देगी। सीमांचल के मतदाताओं से सीधा जुड़ाव बनाते हुए ओवैसी ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपने क्षेत्रीय नेतृत्व और संगठन को और मजबूत करेंगे।
राजनीतिक रणनीति के साथ-साथ ओवैसी ने सामाजिक मुद्दों पर भी भाजपा को घेरते हुए जाति जनगणना की मांग दोहराई। उन्होंने सवाल किया कि आखिर ओबीसी को सिर्फ 27% आरक्षण क्यों मिला और सरकार यह जनगणना कब पूरी करेगी। ओवैसी ने यह भी पूछा कि क्या इसकी रिपोर्ट 2029 के आम चुनाव से पहले सार्वजनिक होगी या नहीं।
जातिगत गणना पर केवल AIMIM ही नहीं, बल्कि बिहार सरकार और विपक्ष भी केंद्र पर दबाव बना रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस कदम का स्वागत किया तो तेजस्वी यादव ने इसे समाजवादी विचारधारा की जीत बताया। ऐसे में यह मुद्दा आने वाले समय में बिहार की राजनीति में केंद्र में रहने वाला है।