आंध्र प्रदेश: हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति हिंदू धर्म छोड़कर किसी अन्य धर्म, जैसे ईसाई धर्म, में परिवर्तन करता है, तो वह अपनी अनुसूचित जाति (एससी) की स्थिति खो देगा और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकेगा। यह फैसला अक्काला रामी रेड्डी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिनके खिलाफ गुंटूर जिले के एक पादरी चिंतदा आनंद ने जातिगत उत्पीड़न का मामला दर्ज किया था।
आनंद, जो 10 साल से ईसाई धर्म का पालन कर रहे हैं, ने अनुसूचित जाति का दर्जा होने का दावा किया था। हालांकि, कोर्ट ने संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 और 1986 के सूसाई बनाम भारत सरकार मामले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति का दर्जा केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म का पालन करने वालों के लिए है। कोर्ट ने कहा कि केवल जाति प्रमाण पत्र के आधार पर, जो रद्द नहीं हुआ था, एससी/एसटी अधिनियम का उपयोग करना मान्य नहीं है, जब याचिकाकर्ता ने धर्म परिवर्तन कर लिया हो। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया।
इस फैसले ने व्यापक बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे आरक्षण लाभ के लिए धर्म परिवर्तन पर अंकुश लगाने वाला कदम मान रहे हैं, वहीं अन्य का तर्क है कि यह दलित धर्मांतरितों के साथ भेदभाव करता है, जो अभी भी जातिगत भेदभाव का सामना करते हैं।