नई दिल्ली : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की वंशज होने का दावा करने वाली रौशन आरा की याचिका खारिज कर दी है। रौशन आरा ने लाल किले पर रॉयल्टी और पारिवारिक स्वामित्व का दावा करते हुए याचिका दायर की थी। कोर्ट ने यह याचिका “164 वर्षों की देरी” के कारण स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने टिप्पणी की, “इतने वर्षों बाद अगर इस प्रकार के दावे को मंजूरी दी जाए, तो फिर आगरा किला और फतेहपुर सीकरी जैसे अन्य ऐतिहासिक स्थलों पर भी इसी तरह के दावे उठ सकते हैं।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को अपने पूर्वजों की स्थिति और ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी थी, फिर भी उन्होंने समय रहते कोई कानूनी कदम नहीं उठाया।
सुल्ताना बेगम की पीड़ा और संघर्ष
रौशन आरा की दादी सुल्ताना बेगम, जो हावड़ा (पश्चिम बंगाल) में एक झोपड़ी में रह रही हैं और 6000 रुपये की सरकारी पेंशन पर निर्भर हैं, वर्षों से इस मुद्दे पर संघर्ष कर रही हैं। उन्होंने पहले दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जो 2021 और 2024 में खारिज हो गई। सुप्रीम कोर्ट में यह अंतिम अपील भी अब ठुकरा दी गई है।
इतिहास और संपत्ति विवाद
लाल किला, जिसे 1639 में शाहजहां ने बनवाया था, 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश शासन के अधीन चला गया और बहादुर शाह जफर को बर्मा (अब म्यांमार) निर्वासित कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद यह राष्ट्रीय धरोहर बन गया और अब भारत सरकार के अधीन है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इतने लंबे अंतराल के बाद ऐसे ऐतिहासिक दावों को न्यायिक मान्यता देना असंभव है। ऐसे मामलों से ऐतिहासिक संपत्तियों पर अनावश्यक विवाद खड़े हो सकते हैं, जिनका कोई ठोस कानूनी आधार नहीं होता।