बिहार की चनपटिया विधानसभा सीट एक बार फिर चर्चा में है — न केवल इसके राजनीतिक इतिहास के लिए, बल्कि इसके जातीय समीकरण और जमीनी मुद्दों को लेकर भी। पश्चिमी चंपारण जिले की यह सीट एक समय कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन साल 2000 से इसने भगवा रंग ओढ़ लिया, और तब से अब तक भाजपा की पकड़ यहां से ढीली नहीं हुई।
Nautan Assembly Seat: जहां यादव-मुस्लिम बहुलता के बावजूद कांग्रेस और भाजपा में होती रही है टक्कर!
इतिहास की करवटें: कांग्रेस से लेकर कम्युनिस्ट तक
चनपटिया में चुनावों की शुरुआत 1957 में हुई, जहां पहली बार कांग्रेस की केतकी देवी विजयी रहीं। इसके बाद 60 और 70 के दशक में कांग्रेस ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की। लेकिन 1980 में बदलाव की बयार बहने लगी जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने सीट पर कब्जा जमाया। उन्होंने 1985 और 1995 में भी जीत दर्ज की, जिससे यह सीट वामपंथी धारा की पहचान बनने लगी।
लेकिन साल 2000 बना टर्निंग पॉइंट
साल 2000 से भाजपा ने यहां जीत का सिलसिला शुरू किया जो आज तक थमा नहीं है। 2000, 2005, 2010, 2015 और 2020 — पांच लगातार चुनावों में बीजेपी ने इस सीट पर परचम लहराया।
2020 में भाजपा के उमाकांत सिंह ने कांग्रेस के अभिषेक रंजन को हराया। सिंह को 83,828 (47.69%) और रंजन को 70,359 (40.03%) वोट मिले।
2015 में प्रकाश राय ने जेडीयू के एनएन सैनी को मात्र 464 वोटों से हराया था, जो इस सीट की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की तीव्रता को दर्शाता है।
जातीय समीकरण: ब्राह्मण और यादव बनाम समीकरण का गणित
चनपटिया विधानसभा सीट पर ब्राह्मण और यादव मतदाताओं का दबदबा है। मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक संख्या में मौजूद हैं (लगभग 21.6%), वहीं भूमिहार और कोइरी जातियों की उपस्थिति भी असर डालती है। ऐसे में किसी भी पार्टी के लिए सोशल इंजीनियरिंग एक चुनौती से कम नहीं।
जनसांख्यिकी और मतदान पैटर्न
- अनुसूचित जाति मतदाता: 13.86%
- मुस्लिम मतदाता: 21.6%
- ग्रामीण मतदाता: 93.83%
- 2020 वोटिंग प्रतिशत: 61.46%
- 2015 वोटिंग प्रतिशत: 63.84%
- 2010 वोटिंग प्रतिशत: 55.77%
जमीनी मुद्दे: सिर्फ वोट नहीं, विकास भी चाहिए
2020 के चुनाव में कुछ स्थानीय मुद्दों ने भारी चर्चा बटोरी —
- बंद पड़ी चीनी मिल
- बाढ़ और कटाव की समस्या
- जलजमाव और सड़कें
- स्टील प्रोसेसिंग यूनिट की मांग
हालांकि, इन मुद्दों पर अब तक जितनी राजनीतिक बातें हुईं, उतने ठोस समाधान नहीं मिले।
चनपटिया विधानसभा सीट आज भले ही भाजपा का अभेद्य किला बन गई हो, लेकिन मतदाताओं की अपेक्षाएं और जमीनी चुनौतियां लगातार नेताओं की परीक्षा लेती रहेंगी। क्या 2025 में बीजेपी इस भरोसे को फिर कायम रख पाएगी या कोई नया समीकरण इस अभेद्य गढ़ को भेदेगा? इसका जवाब आने वाले समय में छिपा है।