बेतिया विधानसभा सीट—चंपारण की ऐतिहासिक धरती पर बसी यह सीट बिहार की राजनीति में हमेशा चर्चा में रही है। 1951 में कांग्रेस के प्रजापति मिश्रा की जीत से शुरू हुई सियासी यात्रा आज भारतीय जनता पार्टी की मजबूत पकड़ में दिखाई देती है। लेकिन यह सफर उतना आसान नहीं रहा जितना आंकड़े दिखाते हैं।
चनपटिया विधानसभा: कांग्रेस-लेफ्ट के गढ़ से बीजेपी के किले तक का सियासी सफर
1990 से पहले तक कांग्रेस का किला मानी जाने वाली इस सीट पर बदलाव की आंधी तब आई जब भाजपा के मदन प्रसाद जायसवाल ने पहली बार कमल खिलाया। इसके बाद 1995 में जनता दल और फिर 2000 से लेकर 2010 तक बीजेपी की रेनू देवी ने इस सीट पर लगातार चार बार जीत दर्ज की।
2015 में महागठबंधन ने मारा झटका
2015 में जब बिहार की राजनीति में लालू यादव और नीतीश कुमार ने हाथ मिलाया, तो उसका असर बेतिया में साफ दिखा। कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी ने बीजेपी की सीनियर नेता रेणु देवी को 2,320 वोटों से मात देकर कांग्रेस को 30 साल बाद सीट वापस दिला दी।
2020 में भाजपा की वापसी
हालांकि कांग्रेस की यह जीत ज्यादा समय तक टिक नहीं सकी। 2020 में फिर से रेणु देवी ने चुनाव जीता और 84,496 (52.83%) वोट लेकर सत्ता में लौटीं। कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी को 66,417 (41.53%) वोट मिले।
जातीय समीकरण और वोटिंग पैटर्न
बेतिया में मुस्लिम वोटर (24.6%) और यादव-पासवान-रविदास समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। बावजूद इसके कांग्रेस या राजद को निरंतर समर्थन नहीं मिला। यह दर्शाता है कि जातीय समीकरण के साथ प्रत्याशी की लोकप्रियता और संगठन की मजबूती भी मायने रखती है।
चुनावों में मतदान प्रतिशत
- 2010: 55.25%
- 2015: 59.35%
- 2020: 56.26%