बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की हरसिद्धि विधानसभा सीट का सियासी सफर बेहद दिलचस्प रहा है। 1952 में अस्तित्व में आई यह सीट शुरुआत में कांग्रेस के प्रभाव में रही, जिसने यहां 7 बार जीत दर्ज की। लेकिन 1990 के बाद से कांग्रेस का प्रभाव घटने लगा और क्षेत्रीय दलों का दबदबा बढ़ता गया।
2020 का चुनाव: भाजपा की दमदार वापसी
2020 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी कृष्णा नंदन पासवान ने 84,615 वोट (49.71%) पाकर राजद के कुमार राजेंद्र को हराया, जिन्हें 68,930 वोट (40.50%) मिले। इस चुनाव में 63.23% वोटिंग हुई थी, जो इस सीट की औसत से अधिक रही।
2015: राजद की जीत, भाजपा की हार
2015 में राजद के राजेंद्र कुमार ने कृष्णा नंदन पासवान को हराया था। राजेंद्र को 49.9% और कृष्णा नंदन को 43.1% वोट मिले थे। यह मुकाबला भी बेहद कड़ा था, जिसमें अंतर 10,267 वोटों का रहा।
2010: भाजपा की पहली बड़ी जीत
2010 में कृष्णा नंदन पासवान ने पहली बार यहां से भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। उन्हें 48,130 वोट (46.87%) और राजद के सुरेंद्र कुमार को 30,066 वोट (29.28%) मिले थे।
जातीय समीकरण: मुस्लिम और दलित मतदाता निर्णायक
हरसिद्धि सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जहां एससी मतदाताओं की संख्या 43,349 (16.18%) है। वहीं, मुस्लिम मतदाता 49,564 (18.5%) और कोइरी व रविदास समुदाय की भूमिका भी निर्णायक मानी जाती है। यहां पूरी आबादी ग्रामीण है, और चुनावी मुद्दे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से जुड़े होते हैं।
हर दल को मिला है मौका
अब तक इस सीट से कांग्रेस, राजद, भाजपा, लोजपा, जनता दल, समता पार्टी, CPI जैसी कई पार्टियां जीत चुकी हैं। लोजपा ने यहां दो बार जीत दर्ज की, जबकि जदयू आज तक एक भी बार यह सीट नहीं जीत पाई।
2025 की तैयारी: भाजपा मजबूत, पर चुनौती बरकरार
2025 के चुनाव के मद्देनज़र भाजपा इस सीट पर अपनी पकड़ और मजबूत करने की कोशिश में है। हालांकि राजद भी पिछली जीतों का हवाला देकर मुकाबले को कड़ा बनाएगी। मुस्लिम और एससी वोटों की गोलबंदी किसके पक्ष में जाती है, यह तय करेगा परिणाम।
हरसिद्धि विधानसभा सीट पूर्वी चंपारण की राजनीति का अहम केंद्र है। यहां का जातीय समीकरण, राजनीतिक बदलाव और वोटिंग ट्रेंड यह दर्शाते हैं कि यह सीट अब भी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती बनी हुई है। 2025 में यहां एक बार फिर भाजपा और राजद के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।